Monday, November 28, 2016

अकेलापन, अभिशाप नहीं

 “अकेला व्यक्ति कमजोर नहीं होता है बल्कि शक्तिशाली होता है”-- स्वामी विवेकानंद
“वह कभी अकेले नहीं होते, जिनके पास आदर्श विचार हैं” -- फिलिप सिडनी
व्यक्ति के अंदर नए विचार व आविष्कार की धारणाएं अकेलेपन में ही पैदा होती हैं| दरअसल अकेलापन और कुछ नहीं एक सोच है, महज़ एक भाव है व्यक्ति के मन का | जब हम स्वयं को महत्वहीन समझने लगते हैं और निष्क्रिय हो जाते हैं तब हम अकेलापन महसूस करते हैं| यह जरूरी नहीं है कि व्यक्ति अकेला होता है तभी अकेलापन महसूस करता है| कई बार बहुत सारे लोगों के बीच होते हुए भी, अपनों के होते हुए भी हम खुद को अकेला महसूस करने लगते हैं| जब हमें जरूरत के समय किसी से सहारा नहीं मिलता या कोई हमारी मन:स्थिति को समझने वाला नहीं मिलता, हमारे जज्बातों  को समझने वाला नहीं मिलता तब व्यक्ति अकेलापन महसूस करता है |
कई लोगों के बीच होते हुए भी व्यक्ति खुश ना रहे लेकिन उस व्यक्ति को अकेला रहना भी पसंद ना हो यही अकेलापन कहलाता है कि सबके  साथ होकर भी वह खुद को अकेला समझे और दूसरी तरफ जब व्यक्ति अपनी इच्छा से अकेले रहना चाहता है सिर्फ अपने साथ तो इसका मतलब है कि व्यक्ति एकांत चाहता  है और वह व्यक्ति एकांत में अकेले रह कर भी खुश है, संतुष्ट है क्योंकि वह व्यक्ति एकांत में स्वयं को प्रसन्नचित, आनंदित, सकारात्मक सोच,  सक्रियता, भावनात्मक व मानसिक रुप से तरोताजा महसूस करता है|
अकेलापन आखिर किन कारणों से प्रकाश में आता है---??
सृष्टि के  प्रत्येक प्राणी में  आचार-विचार,स्वभाव, सोच भिन्न-भिन्न होने के कारण अकेलेपन के कारण भी भिन्न-भिन्न हो सकते हैं? मसलन घर का माहौल, स्वयं से कोई गलती या अपराध हो जाना, पति-पत्नी की आपसी सोच व विचारधारा ना मिलना, मनमाफिक रोजगार ना मिलना, किसी बात का अहंकार होना, लगातार असफलताएं मिलना, परिवार में वैचारिक मतभेद होना, किसी के द्वारा विश्वासघात या धोखा देना...वगैरह -वगैरह |
अतः प्रश्न उठता है कि  अकेलेपन से निजात कैसे पाई जाए……?
अकेलेपन का मतलब कई व्यक्तियों के साथ का ना होना नहीं है बल्कि लोगों के साथ रहते हुए भी भावनात्मक लगाव, अपनेपन के  एहसास का ना होना है|
सबसे पहले व्यक्ति को अपने अकेलेपन का कारण ढूंढकर, फिर उसे समझ कर उसका यथासंभव निवारण करना चाहिए-----
सकारात्मक सोच अपनाएं|
कुछ नया करने का प्रयास करें|
अहंकार को स्वयं से दूर रखें|
संगीत सुनें, नृत्य करें, बागवानी करें, लेखन की आदत डालें, नई नई जगह घूमने जाएं, फोटोग्राफी करें, ज्ञानवर्धक पुस्तकें पढ़ें , कुकिंग करें या जो भी आपको रुचिकर लगे उसको बेहतर तरीके से अंजाम देने का प्रयास करें|
सृष्टि की हर एक चीज में खूबसूरती देखने की कला को विकसित करें क्योंकि प्रकृति की सभी चीजों में कुछ ना कुछ अद्भुत है, यदि आप हर चीज को  गहराई से  देखेंगे तो आप हर एक चीज को बेहतर तरीके से समझ सकेंगे |
कमजोर व्यक्ति तो  अपने दम पर किसी भी कार्य को करने की हिम्मत ही नहीं जुटा पाता है इसके इतर साहसी व्यक्ति उसी काम को अकेले दम पर करने का साहस करता है|
स्मरण रखें…. विश्व एक व्यायामशाला है, जहां हम खुद को मजबूत बनाने के लिए आते हैं|
रविंद्रनाथ टैगोर जी ने  नारा दिया है-- “एकला चलो”
“स्वतंत्र होने का साहस करो, जहां तक तुम्हारे विचार जाते हैं वहां तक जाने का साहस करो और उन्हें अपने जीवन में उतारने का साहस करो”--स्वामी विवेकानंद
“शक्ति जीवन है, निर्बलता मृत्यु है| विस्तार जीवन है, संकुचन मृत्यु है| प्रेम जीवन है, द्वेष मृत्यु है|
खुद को कमजोर समझना सबसे बड़ा पाप है”-- विवेकानंद जी
“ जो अकेले चलते हैं,वे शीघ्रता से आगे बढ़ते हैं”-- नेपोलियन
अगर पाना है मंजिल तो अपना रहनुमा खुद बनो,वे अक्सर भटक जाते हैं जिन्हें सहारा मिल जाता है|
अतः हमेशा सोचें --कि  आज अच्छा था, आज मजेदार था, कल एक और बेहतर, खूबसूरत, आनंददायक दिन होगा फिर देखिए अकेलेपन की भावना आपसे कोसों दूर नजर आएगी और आप स्वयं को शक्तिशाली महसूस करेंगे|

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Sunday, November 20, 2016

नोट बंदी (एक नासूर का अंत)


  बड़े नोट ( 500/-, 1000/-) की बंदी पर जागरूक नागरिक सहमत हैं  तो वहीं दूसरी ओर विरोधी राजनीतिक दल जनता के सामने गलत अफवाहें फैला कर भ्रमित करने की कोशिश कर रहे हैं, जिससे  कि आम जनता आक्रोशित हो व उनकी परेशानी बढे|  इतने बड़े फैसले के बाद थोड़ी सी परेशानी होना तो लाजिमी हैं अतः विरोधी राजनीतिक दलों के नेताओं को चाहिए कि अपने स्तर से कुछ कारगर कदम उठाएं ताकि आम जनता को जरा भी परेशानी ना हो बल्कि हो इसके इतर रहा है, विपक्षी दल इस तरह का माहौल पैदा कर रहे हैं कि देश की स्थिति बिगड़े | विपक्षी दल जनता के बीच निराधार अफवाहें फैला कर स्थिति को बदतर बनाने की पुरजोर कोशिश कर रहे हैं |अफसोस की बात है कि कुछ राज्यों  के मुख्यमंत्री जनता के बीच व मीडिया के माध्यम से अनर्गल आरोप-प्रत्यारोप से स्थिति को बेकाबू करने पर तुले हुए हैं, यहां तक की भाजपा नेता भी काले धन पर लगाम लगाने के फैसले का तो समर्थन कर रहे  है लेकिन वास्तव में उन्हें जनता की जो मदद करनी चाहिए, परेशानियों को कम करने के लिए वो उससे  पीछे क्यों हट रहे  है? आखिर क्या वजह है?

जबकि देश-विदेश के बुद्धिजीवी वर्ग ने भारत सरकार के नोट बंदी फैसले का स्वागत व समर्थन किया है, फिर क्या वजह है कि विपक्षी राजनीतिक दल इस फैसले पर अपना सहयोग देने की बजाय अपने ही विरोधी दलों से हाथ मिला रही है वह उन्हीं की ज़ुबानी  बोल रही है ?

खैर, सरकार को इन हालातों  के मद्देनज़र सचेत हो जाना चाहिए कि आने वाले समय में यह सब गतिविधियां किसी बड़ी परेशानी का सबब बन सकती हैं|

वर्ल्ड बैंक चेयरमैन ने कहा,” नरेंद्र मोदी से बेहद प्रभावित हूं भारत में आगे बढ़ने की क्षमता अब और प्रबल हो गई है|

दुनिया के सबसे बड़े मार्केटिंग गुरु फिलिप कोटलर  ने कहा, “मैंने दुनिया भर के लोगों को कुछ ना कुछ सिखाया, पर नरेंद्र मोदी को सिखाने के लिए मेरे पास कुछ भी नहीं,  उन्हें सब आता है|”

सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के फैसले को सराहा,कहा , "नोट बंदी देश के भविष्य के लिए,  कुछ परेशानियां तो होंग”|
बिल गेट्स ने कहा, “मैंने अपने जीवन में बहुत से राष्ट्र प्रमुखों को देखा पर नरेंद्र मोदी जैसा कोई नहीं, जिस पर कोई दबाव काम नहीं करता”

हालांकि विपक्षी राजनीतिक दलों से यह अपेक्षा तो नहीं की जा सकती कि वे  किसी मुद्दे पर एकमत हो सकते हैं लेकिन कम से कम यह उम्मीद तो की जा सकती है कि  आम जनता की परेशानी पर तो राजनीति न करें|
सरकार नोट बंदी के फैसले के बाद भरसक प्रयत्न कर रही है कि आम जनता को  ज्यादा परेशानी ना हो, बैंकों में नए नोट पहुंचाए जा रहे हैं, ज्यादा से ज्यादा एटीएम चालू करने के लिए वह उनमें पर्याप्त कैश की व्यवस्था के लिए सरकार ने यथासाध्य कदम उठाए हैं|


सबसे अच्छी बात यह देखने में आ रही है कि इतने  बड़े फैसले के बाद जो थोड़ी सी परेशानी आम जनता को  हुई या हो रही है उसके बाद भी जनता समझदारी व धैर्य का परिचय दे रही है|

अतः विपक्षी राजनीतिक दलों को भी अपने दायित्व व कर्तव्यों के प्रति  सजग व जागरुक  रहना चाहिए जिससे कि देश लाभांवित हो क्योंकि इस फैसले के दूरगामी प्रभाव बहुत ही स्वर्णिम हैं | निजी स्वार्थ से  ऊपर उठकर देश हित के लिए सरकार के फैसले पर सहयोगात्मक रुख अपनाएं तथा आम जनता की परेशानियों को कम करने के लिए सभी विपक्षी दलों को अपने स्तर से उचित व कारगर कदम उठाने चाहिए|


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Monday, November 14, 2016

युवा ( देश की शक्ति )


अमूमन “युवा” शब्द सुनते या बोलते ही हमारे दिलो-दिमाग में 18 से लेकर 30- 35 वर्ष के बालक-बालिका की छवि प्रतिबिंबित हो जाती है क्योंकि हमने युवाओं की छवि को एक उम्र की सीमा में बांध लिया है जबकि युवा का उम्र से कोई सरोकार ही नहीं है|  दरअसल युवा का अर्थ ऊर्जा, उमंग, उत्साह, साहस, जज्बा, जुनून से है| जिसके अंदर यह सारे गुण विद्यमान हों वास्तव में वही युवा है फिर चाहे उस व्यक्ति की उम्र 18 साल हो या 80 साल| क्योंकि जब तक किसी भी व्यक्ति के अंदर ऊर्जा, उत्साह, उमंग जिंदा है,कुछ कर गुजरने का साहस है और उसकी उम्र 10 साल या 50 साल कुछ भी हो वह व्यक्ति सही मायने में युवा होता है|

जब कृष्ण ने कंस को मारा तब कृष्ण की आयु मात्र 11 वर्ष छह माह थी और जब राम ने रावण को मारा तब  राम की उम्र 53 वर्ष थी, 20 वर्ष की उम्र में सिकंदर मैसिडोनिया का राजा बन गया था क्योंकि बचपन से ही सिकंदर ने  विश्व विजय का सपना देखा था , अष्टावक्र एक महान तेजस्वी तत्वदर्शी थे जिन्होंने अपनी मां के गर्भ से ही अपने पिता के वेदपाठ के उच्चारण को गलत बताया| झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने मात्र 23 वर्ष की आयु में ब्रिटिश साम्राज्य की सेना से लड़ाई की और रणभूमि में वीरगति को प्राप्त हुई।जो आज KFC के नाम से विख्यात है फ्राइड चिकन बिजनेस, इसकी शुरुआत कोलोनल हर्लैंड डेविड ने  65 वर्ष की उम्र में की थी|

राष्ट्र का भविष्य युवा पीढ़ी है लेकिन वर्तमान युवा पीढ़ी निष्क्रिय, सुषुप्त, तनावग्रस्त, संशयग्रस्त , कुंठा, अवसाद की गिरफ्त में हैं और इस का प्रमुख कारण बाहरी कारकों से अशांत होना, एक हार से अवसादग्रस्त हो जाना, कुंठा से भर जाना, इच्छा पूर्ति ना होने पर कुंठित होकर अपनों से ही लड़ना यही सब मानसिक विकृतियां युवाओं को दिशाहीन, पथभ्रष्ट और उनके आंतरिक वेग  को प्रभावित कर रही है| जबकि वर्तमान परिवेश में आवश्यकता है कि युवा सरलता और सादगी की ऐसी शक्तिशाली दीप शिखा बनकर उभरें जिससे कि राष्ट्र की पहले वाली संस्कृति एक बार फिर से जाग जाये |
पूरे विश्व में सबसे ज्यादा युवा शक्ति भारत में ही है फिर भी भारत समृद्ध नहीं, उन्नत नहीं…... आखिर क्यों???? यह एक ज्वलंत प्रश्न है |

इस सृष्टि में मनुष्य ही सबसे ज्यादा आकर्षक शरीर, जिसमें 2 हाथ, दो पैर, दो कान, दो आँख , एक नाक, एक खूबसूरत दिल और उर्वरक  दिमाग लेकर आया है जबकि यह सौभाग्य सृष्टि के किसी भी प्राणी को प्राप्त नहीं है इसके बावजूद भी युवा पथ भ्रमित ,दिशा भ्रमित हो रहे हैं| आवश्यकता है तो इस बात की, कि युवा पीढ़ी को सही दिशा-निर्देशन मिले जिससे  कि उनकी ऊर्जा सही दिशा में लगे और इसके लिए परिवार व समाज को महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी|


स्वामी विवेकानंद जी का कहना था, कि “युवा वह है, जो अनीति से लड़ता है, जो दुर्गुणों से दूर रहता है, जो काल की चाल को बदल देता है, जिसमें जोश के साथ होश भी है, जिसमें राष्ट्र  के लिए बलिदान करने  की आस्था है, जो समस्याओं का समाधान निकालता है और प्रेरक इतिहास रचता  है, जो बातों का बादशाह नहीं बल्कि काम करने में विश्वास रखता है|”
अतः स्मरण रहे कि कुछ कर गुजरने के लिए उम्र नहीं बल्कि जज्बा,जोश,होश और ऊर्जा चाहिए| ना करने वालों के लिए उम्र तो एक बहाना है बल्कि निष्क्रिय लोगों के लिए एक खूबसूरत बहाना { उम्र का आड़े आना } है|

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Friday, November 11, 2016

ज्ञान /दृष्टि/भावना

संसार में कोई भी व्यक्ति सर्वज्ञाता नहीं है इसलिए हमें आपस में अपने-अपने ज्ञान का आदान - प्रदान करने की भरपूर कोशिश करनी चाहिए क्योंकि सृष्टि के प्रत्येक प्राणी में कुछ ना कुछ खास होता है किसी ना किसी विषय पर उसकी पकड़ मजबूत होती है ज्ञान का सागर होता है दरअसल हमारे कुछ विशेष होने का झूठा दम्भ ही वास्तव में हमारे दुखों का असली कारण है ।जिस दिन हमें इस बात का ज्ञान हो जाता है उसी दिन से हमारा यह अहंकार तिरोहित हो जाता है और फिर हमें प्रत्येक व्यक्ति में कुछ ना कुछ या किसी ना किसी विषय से संबंधित ज्ञान का भंडार दिखाई देने लगता है अतः फिर हम उस व्यक्ति से कुछ भी सीखने ,समझने या ज्ञान लेने में किसी भी प्रकार की लज्जा  या शर्म महसूस नहीं करते हैं फिर चाहे वह हमसे उम्र में छोटा हो या बड़ा।
दरअसल यह हमारा दृष्टि दोष ही है क्योंकि हमारी दृष्टि जैसी होती है वैसी ही हमें दुनिया दिखाई देती है इसका उदाहरण…. दुर्योधन को कभी कोई अच्छा व्यक्ति नहीं मिला और युधिष्ठिर को कोई बुरा व्यक्ति नहीं मिला।
जब विभीषण को रावण ने लात मारकर  लंका से निकाल दिया था तब विभीषण श्री राम की शरण में गए।
राम जी के साथियों के मन में  कई प्रकार की आशंकाएं तथा दुर्भावनाएं आने लगी कि हो ना हो विभीषण हमारा भेद लेने के लिए ही आए हैं ,इन्हें दंड देना चाहिए लेकिन श्री राम जी ने कहा कि……...   जो पैं दुष्ट हृदय सोई होइ ,मोरे सन्मुख आव कि सोई।
निर्मल मन जन सो मोहि पावा, मोह कपट-छल,छिद्र ना भावा।।

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Wednesday, November 9, 2016

स्मृति और विस्मृति

भूलना , दृढ इच्छाशक्ति के चलते अवांछित या दर्द देने वाली यादों को भुला देना या भूल जाना, ईश्वर द्वारा  प्रदत्त हम मनुष्यों के पास एक  ऐसी सौगात है, जो हमें निरंतर उन्नति के पथ पर अग्रसर करती है| मनोवैज्ञानिकों के अनुसार, हमारे जीवन में कम से कम 1000000 घटनाएं घटित होती हैं, जिन्हें या तो हम स्वयं भूल जाते हैं या प्रकृति उन्हें हमारी यादों से मिटा देती है|अत: विस्मृति कोई दोष नहीं बल्कि हमारी मित्र है।
संसार में हर तरफ धोखेबाज़ी,विश्वासघात,पक्षपात,अपमानित करना,दूसरों को कमतर आँकना, दोषारोपण करना इत्यादि दुर्भावनाओं का जाल फैला हुआ है,जिससे क़ि मानव मन आहत होता रहता है।यदि आहत मन उक्त बातों को भूले नहीं तो वो पागल हो जायेगा या जीवन का लुत्फ़ उठाने के काबिल ही नही रहेगा।अत: इस परिस्थिति से उबरने के लिए विस्मृति रामबाण औषधि होती है।
स्मृति और विस्मृति दोनों ही परमपिता परमात्मा द्वारा प्रदत्त अनमोल उपहार है मनुष्य के पास ……
कल्पना करने मात्र से हमारी रूह कांप उठती है कि अगर विस्मृति ना होती तो क्या होता ?
हमारे मन में कभी-कभी कुछ ऐसी बातें या  घटनाएं घटती है जो स्थाई रूप से हमारे दिमाग में गहरी जड़ें जमा लेती हैं …... अंततः अंजाम, हमारे जीवन का सुख ,चैन, शांति सब कुछ  ख़त्म करती  रहती हैं |हमारे जीवन को बोझिल ,उबाऊ,नीरस बनाकर हमें क्रोधी और चिड़चिड़ा बना देते हैं|
फलस्वरुप हम महसूस करने लगते हैं  कि ऐसी बोझ बनी जिंदगी जीने का क्या फायदा?
इस प्रकार के जीवन की भयावहता से बचने का केवल एक ही सीधा और सरल उपाय है कि हम अपने अंदर की उन सारी कड़वी और बेचैन करने वाली  यादों को भुला दें, मिटा दें उन्हें अपने जहन से| एक बार जहां हमने उन कड़वी यादों को मिटाया वहीं से बल्कि यूं कहें कि उसी पल से हमारे अवसाद, चिंताएं और बेचैनी सब कुछ खत्म हो जाते हैं |पूर्ण विराम लग जाता है उन कड़वी यादों पर और हमारी जीवन धारा ही बदल जाती हैं|
याद रखें मनुष्य का सबसे बड़ा मित्र और शत्रु कोई और नहीं बल्कि उसका अपना मन ही होता है |
(दोनों ही हमारे परम मित्र है)

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Friday, November 4, 2016

सहानुभूति / समानुभूति



किसी के दुख मे अनुभूति, हमदर्दी, करुणा, किसी दुखी व्यक्ति के प्रति प्रकट की जाने वाली दया को सहानुभूति कहते हैं लेकिन सहानुभूति सहायता करने की प्रवृत्ति के लिए तत्पर हो यह जरुरी नहीं है सिर्फ हृदय की भावुकता तक ही सीमित रहने वाली सहानुभूति सराहनीय नहीं होती |

सराहनीय अनुभूति का भाव वही है जो हृदय में किसी के प्रति हमदर्दी ,दया के भाव आते ही क्रिया रूप में गतिशील होने लगे| किसी की पीड़ा को देख कर किंकर्तव्यविमूढ़ होकर सिर्फ मौखिक  रुप से दया ,करुणा की बात करते रहना,आहें भरने लगना या आंसू बहाने लगना….  महज़ एक दिखावे की संवेदना या कोरी भावुकता है !यह सार्थक सहानुभूति नहीं है।

सच्ची संवेदना, सहानुभूति की श्रेणी में तभी आ सकती है जब व्यक्ति के दुख या  पीड़ा को दूर करने के लिए यथासंभव,यथासाध्य  प्रयत्न किया जाए ।

समानुभूति वह गुण है जो हमें दूसरों को उनकी मन:स्थिति के अनुरूप समझने, सोचने ,महसूस करने और उन्हें वैसे ही स्वीकार कर पाने की क्षमता देती है| सिर्फ समानुभूति से ही यह संभव हो पाता है कि हम ऐसे उचित एवं कारगर उपायों को ढूंढ सकें जो दूसरों के लिए प्रगतिशील सिद्ध हों| अर्थात समानुभूति  मतलब दूसरों की आंखों से देखना, दूसरे के कानों से सुनना , दूसरे के दिमाग से समझना और दूसरे के दिल से महसूस करना । ऐसा करने के लिए समानुभूति करने वाले व्यक्ति को अपने जूते उतार कर दूसरे व्यक्ति के जूते पहनने पड़ते हैं  और दूसरे के जूते में पैर रखने से पहले उसे अपने जूते उतारने होंगे|
समानुभूति स्थाई रिश्तो की  नींव है क्योंकि इस गुण के चलते दो व्यक्ति एक स्तर पर रहते हैं दरअसल यह एक दृष्टिकोण है जिससे स्वत: ही प्रतिक्रिया होती है जबरदस्ती करवाई नहीं जाती या  कह सकते हैं कि समानुभूति एक ऐसा यंत्र है जिसके द्वारा एक व्यक्ति के मन में जाकर उसके अस्तित्व को पहचाना जा सकता है। समानुभूति समान स्तर पर ही संभव हो पाती है|




समानुभूति सोच तक सीमित नहीं हो सकती और न ही पूर्वाग्रह से ग्रसित होती है बल्कि समानुभूति करने वाला   व्यक्ति वही महसूस करता है जो दूसरा व्यक्ति महसूस करता है, वही समझ सकता है जो दूसरा व्यक्ति समझता है| पहला भावात्मक  तत्व है जो कि सभी प्राणियों में होता है जबकि दूसरा तत्व संज्ञानात्मक है जो केवल मनुष्यों में है| दूसरों के कष्ट या संवेगों को संबंधित व्यक्ति के दृष्टिकोण से समझने की योग्यता सिर्फ मनुष्य में होती है| परिचितों के प्रति, आत्मीय जन के प्रति, साथी मनुष्यों के प्रति या जो हमारे जैसे होते हैं उनके प्रति  समानुभूति अधिक होती है| वही व्यक्ति अधिक समानुभूति व्यक्त करते हैं जब उन्होंने उसी प्रकार का कष्ट या  आपदा का सामना किया हो? प्रभावित व्यक्ति के द्वारा जितनी अधिक भावनात्मक व्यथा अभिव्यक्त की जाती है उतनी अधिक सहायता प्राप्त होती है| समानुभूति उस व्यक्ति पर अधिक होती है जो हमारे समरूप होते हैं |
स्मरण रहे कि सिर्फ कोरी भावुकता प्रदर्शित करने से बचें क्योंकि इससे किसी को कोई लाभ नहीं होता बल्कि आवश्यकता इस बात की है कि ज़रूरतमंद व्यक्ति के साथ समानुभूति का व्यवहार किया जाये।

Thursday, October 27, 2016

फिल्मी कलाकारों का राजनीतिक बयानबाजी उचित है या अनुचित

हमारे राष्ट्र के संविधान में नागरिकों को प्रदत्त मूल अधिकारों मैं से एक अधिकार है…... अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता


अपने विचारों की अभिव्यक्ति करने का अधिकार प्रत्येक भारतीय नागरिक को है फिर चाहे वह फिल्मी कलाकार हो या आम आदमी| फिल्मी कलाकारों का राजनीतिक बयानबाजी करना मेरे हिसाब से अनुचित नहीं है बशर्ते की बयानबाजी सकारात्मक हो ना की किसी दल विशेष, किसी व्यक्ति विशेष या किसी संप्रदाय विशेष के प्रति  निजी    बैर भाव,  ईर्ष्या, वैमनस्यता, द्वेष या बदले की भावना से ओतप्रोत  हो |

फिल्मी कलाकार भी  अपने  विचारों की  अभिव्यक्ति कर सकते हैं लेकिन किसी भी मुद्दे पर अपने विचार प्रकट करने से पहले यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि उनके विचारों से देश की एकता, अखंडता  व आंतरिक शांति को किसी भी प्रकार का खतरा उत्पन्न ना हो|

फिल्मी कलाकार विज्ञापन के करोड़ों रुपए लेकर कंपनियों को अरबों का फायदा पहुंचाते हैं तो उनका यह नैतिक कर्तव्य बनता है कि राजनीति के किसी भी मुद्दे पर  अपनी वास्तविक  राय निष्पक्ष रुप से जनता के सामने प्रस्तुत करें  क्योंकि देश-विदेश में करोड़ों  अनुयायी , प्रशंसक होते हैं उनके|फिल्मी कलाकारों का नैतिक कर्तव्य है कि वह समाज के सामने किसी भी मुद्दे का वास्तविक दर्पण प्रस्तुत करें जिससे कि  देश भी लाभांवित हो सके| युवा पीढ़ी पर फ़िल्मी कलाकारों की हर चीज़ या उनके मुँह से निकली हर बात का जादू सर चढ़कर बोलता है इसलिए युवा पीढ़ी को सही दिशा-निर्देशन का ख्याल रख कर ही बयानबाज़ी करनी चाहिए फ़िल्मी कलाकारों को।

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फिल्मी कलाकारों का राजनीतिक बयानबाजी उचित है या अनुचित

हमारे राष्ट्र के संविधान में नागरिकों को प्रदत्त मूल अधिकारों मैं से एक अधिकार है…... अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता


अपने विचारों की अभिव्यक्ति करने का अधिकार प्रत्येक भारतीय नागरिक को है फिर चाहे वह फिल्मी कलाकार हो या आम आदमी| फिल्मी कलाकारों का राजनीतिक बयानबाजी करना मेरे हिसाब से अनुचित नहीं है बशर्ते की बयानबाजी सकारात्मक हो ना की किसी दल विशेष, किसी व्यक्ति विशेष या किसी संप्रदाय विशेष के प्रति  निजी    बैर भाव,  ईर्ष्या, वैमनस्यता, द्वेष या बदले की भावना से ओतप्रोत  हो |

फिल्मी कलाकार भी  अपने  विचारों की  अभिव्यक्ति कर सकते हैं लेकिन किसी भी मुद्दे पर अपने विचार प्रकट करने से पहले यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि उनके विचारों से देश की एकता, अखंडता  व आंतरिक शांति को किसी भी प्रकार का खतरा उत्पन्न ना हो|

फिल्मी कलाकार विज्ञापन के करोड़ों रुपए लेकर कंपनियों को अरबों का फायदा पहुंचाते हैं तो उनका यह नैतिक कर्तव्य बनता है कि राजनीति के किसी भी मुद्दे पर  अपनी वास्तविक  राय निष्पक्ष रुप से जनता के सामने प्रस्तुत करें  क्योंकि देश-विदेश में करोड़ों  अनुयायी , प्रशंसक होते हैं उनके|फिल्मी कलाकारों का नैतिक कर्तव्य है कि वह समाज के सामने किसी भी मुद्दे का वास्तविक दर्पण प्रस्तुत करें जिससे कि  देश भी लाभांवित हो सके| युवा पीढ़ी पर फ़िल्मी कलाकारों की हर चीज़ या उनके मुँह से निकली हर बात का जादू सर चढ़कर बोलता है इसलिए युवा पीढ़ी को सही दिशा-निर्देशन का ख्याल रख कर ही बयानबाज़ी करनी चाहिए फ़िल्मी कलाकारों को।

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Tuesday, October 25, 2016

तनाव मुक्त जीवन जीने के लिए सुगंध का महत्व



खुशबू से तन -मन दोनों प्रफुल्लित होते हैं खुशबू हमें तनाव- मुक्त करती है ,राहत देती है और हमारे शरीर में सकारात्मक उर्जा का भी संचार करती है प्राकृतिक खुशबू जैसे फूलों की,फलों की, मिट्टी की खुशबू कई गुणों से भरपूर होती है | खुशबू विशेष का इस्तेमाल करके हम अपने आसपास के वातावरण को सजीव बना सकते हैं , नीरस जिंदगी में रस भर सकते हैं बेरंग जिंदगी में रंग भर सकते हैं | शांति व प्रेम का प्रतीक गुलाब अपनी सुगंध से मलिनता को दूर कर के स्वभाव में मिठास घोल देता है तथा अपनेपन का एहसास कराता है हम विभिन्न प्रकार की खुशबुओं का प्रयोग कर ऊर्जा के मार्ग को बदलकर या यूं कहें की नकारात्मक उर्जा के मार्ग को बदलकर उसकी जगह पर सकारात्मक ऊर्जा का संचार करके नई व मनोवांछित उर्जा को बनाए रख सकते हैं जैसे सुबह -शाम पूजा के लिए चंदन, गुलाब इत्यादि की भीनी -भीनी खुशबू वाली अगरबत्ती का इस्तेमाल कर सकते हैं इससे घर के प्रत्येक सदस्य खासकर तनावग्रस्त सदस्य का मन प्रसन्न रहेगा तथा घर का वातावरण भी तनावमुक्त रहेगा | हमारे आसपास प्राकृतिक खुशबू की कमी नहीं है मिट्टी की खुशबू ने सृष्टि में कई उपयोगी गुण प्रदान किए हैं जैसे मिट्टी पर बारिश की बूंदों से उत्पन्न भीनी -भीनी खुशबू हमारे तन और मन को रोमांचित कर देती है और तनाव को दूर करती है , ओस पड़ने के बाद सुबह के समय खेतों से मिलने वाली खुशबू आंखों की रोशनी बढ़ाने में कारगर होती है अतः हमें अपने शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य के लिए प्राकृतिक खुशबू का इस्तेमाल करना चाहिए |

मनुष्य की ज़रूरतें पूरी करने के लिए प्रकृति के पास सब कुछ उपलब्ध है ,आवश्यकता है तो सिर्फ इस बात की ,कि हम उपलब्ध संसाधनों का उपयोग बुद्धिमत्तापूर्ण करें |

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Monday, October 24, 2016

अलौकिक शक्ति



जब हम स्वयं को गहन अंधकार में घिरा हुआ पाते हैं और दूर तक कोई प्रकाश की किरण नजर नहीं आती उस वक्त सिर्फ हमारी स्वयं की आत्मा का प्रकाश ही हमारा मार्गदर्शन करता है ।सकारात्मक शक्ति से सृजन होता है और नकारात्मक शक्ति से विनाश ।कहा जाता है कि खाली दिमाग शैतान का घर होता है ।जब हम शारीरिक ,मानसिक क्रिया करना बंद कर देते हैं तब हमारे दिमाग में नकारात्मक विचार घर करते रहते हैं और हम सत्य का दामन छोड़ कर असत्य की ओर अग्रसर होते रहते हैं बुरी शक्तियां हमारे अंदर इस कदर घर कर चुकी होती हैं जिसके परिणाम स्वरुप झूठ ,फरेब ,मक्कारी, बदमाशी ,मार -काट ,हिंसा, धोखेबाजी, विश्वासघात इत्यादि नकारात्मक शक्तियां समाज को ही नहीं वरन पूरे राष्ट्र को अपनी गिरफ्त में ले लिया है। मनुष्य के अंदर कई प्रकार की शक्तियां विद्यमान होती हैं मसलन अर्थ शक्ति, ज्ञान शक्ति, जनशक्ति ,निष्ठा शक्ति ,कर्तव्यबोध शक्ति, आत्मशक्ति। इन सभी शक्तियों में सबसे ज्यादा सक्षम व बलशाली आत्मशक्ति ही है ।यदि हमारे अंदर आत्मशक्ति नहीं है तो सारी शक्तियां होते हुए भी सभी शक्तियां शून्यप्राय ही हैं।जब हमें हमारी आत्मशक्ति पर नियंत्रण होगा तभी हम अपनी आत्मशक्ति को सकारात्मक दिशा की तरफ मोड़कर सद्भावना कायम रखने में समर्थ होंगे और तभी हमारी प्रत्येक क्रियाविधि सृजनात्मक होगी अन्यथा दुर्भावना से ग्रसित होकर सिर्फ और सिर्फ विनाश का कारण।

वर्तमान स्थिति को देखते हुए आवश्यकता है कि हम अपनी आत्मशक्ति को इतना बढ़ाएं जिससे कि हमारे अंदर की नकारात्मक शक्तियां सुषुप्तावस्था में पहुंचकर हमेशा के लिए दम तोड़ दें और सकारात्मक शक्तियां इतनी प्रबल हो जाएं कि समूचे राष्ट्र में सुख,संतुष्टि,अमन - चैन,व हर व्यक्ति विश्व बंधुत्व की भावना से ओतप्रोत हो जाए ।

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Sunday, October 23, 2016

अस्तित्व


 व्यक्ति की स्वयं पर आस्था ही अस्तित्व का सृजन करती है| अस्तित्व मतलब ,आस्था+ तत्व{ गुण}, ये वो गुण होते हैं जो  सृष्टि के हर  व्यक्ति में आंतरिक या अंतर्मुखी होते हैं  अर्थात अपने मूलभूत गुणों के प्रति आस्था ही अस्तित्व का प्रथम सोपान है|
इसका दूसरा पहलू (बाह्यगुण)  जो कि किसी भी व्यक्ति को जन्म, जाति, स्थान, वर्ण, लिंग, परिवेश,परवरिश   आदि  से प्रभावित होता है । लेकिन इन बाहरी कारकों से अप्रभावित रहकर जो व्यक्ति अपनी दिशा में आगे बढ़ता है उसकी ज़िन्दगी का हर लम्हा सुख और शांति से व्यतीत होता है अत: इन बाहरी तत्वों से  ऊपर उठकर अपने मूलभूत गुणों का विकास कर लेना ही अस्तित्व है| अपने मूलभूत गुणों को बाहरी तत्वों के कारण खत्म नहीं होने देना चाहिए वरन अपने आंतरिक गुणों को पहचान कर, समझ कर उन्हें सही दिशा देने का प्रयास जारी रखना चाहिए| अस्तित्व कभी भी  अस्थाई या  निर्भर नहीं हो सकता है जरूरत है तो सिर्फ अपने अस्तित्व को पल्लवित करने की|
उदाहरणार्थ शिक्षक का अस्तित्व------ जो छात्र / छात्रा को उनके अस्तित्व से पहचान कराने में सहायक हो,सही मायने में वही शिक्षक/ शिक्षिका है क्योंकि जब शिक्षक / शिक्षिका का अस्तित्व नहीं रहेगा फिर भी उनकी छवि उनके छात्र / छात्राओं में प्रतिबिंबित होगी| वजह एक शिक्षक ही है जो अपने शब्दों से, अभिव्यक्ति के माध्यम से,अपने व्यक्तित्व से उदाहरण प्रस्तुत कर शाश्वत मूल्यों का निर्धारण करता है जिससे सृष्टि का अभ्युदय होता है|
अत्यावश्यक है कि हर व्यक्ति में  चिंतन, काम के प्रति रुचि, नवीनता, सकारात्मकता, रचनात्मकता एवं किए गए कार्य की गुणवत्ता व अपने अस्तित्व की उपयोगिता इन सभी मूल्यों का होना जरूरी है तभी वह अपने अस्तित्व को जीते जी व मरने के बाद भी कायम रख सकता है और सही मायने में इसी प्रकार का जीवन ही सार्थक जीवन कहलाता है| निरर्थक, निरुद्देश्य लंबे जीवन की कोई उपयोगिता नहीं है उदाहरणार्थ जिस प्रकार शाहबलूत का वृक्ष 300 साल तक एक लट्ठे की भांति खड़ा रहता है अपने इतने लंबे जीवन काल में ना किसी राहगीर को छाया प्रदान करता है और ना ही किसी को फल देता है और अंत में इतनी लंबी जिंदगी जीने के बाद  एक लट्ठे  की भांति गिर कर ख़त्म हो जाता है, वहीँ दूसरी ओर कुमुदिनी का फूल जिसकी जिंदगी सिर्फ 1 दिन होती है सिर्फ 1 दिन के लिए ही वह खिलता  है और शाम को मुरझा जाता है लेकिन अपनी खूबसूरती से, हर देखने वाले व्यक्ति की आंखों को, उसकी आत्मा को व दिलो-दिमाग को खुशी व खुशबू से प्रफुल्लित कर देता है| अपनी छोटी सी जिंदगी में ही कुमुदिनी का फूल अनगिनत लोगों  को खुशियां दे जाता है| अतः अति आवश्यक है कि हम अपने अस्तित्व को पहचान कर उसी के अनुरुप कार्य करें जिससे कि हमारा अस्तित्व मरने के बाद भी अमर रहे।


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दोषारोपण {एक मानसिक बीमारी}

आमतौर पर यह मानवीय  स्वभाव है कि उससे  कोई कार्य बिगड़ जाए या कोई गलती हो जाए तो वह उस कार्य को ठीक करने या  सुधारने के विषय में ना विचार कर वरन  तुरंत बिगड़े कार्य का दोष दूसरों पर मढ़ देता है यहां तक कि दोषारोपण करने में वह ईश्वर को भी नहीं बख्शता  तुरंत ईश्वर को और अपने भाग्य को कोसने लगता है या अपना दोष दूसरे व्यक्ति पर मढ़ने कि कोशिश करने लगता है
अक्सर देखने में आता है कि कुछ व्यक्ति अपने दोष को दूसरों पर डाल कर खुद की नज़रों में व अंतरात्मा में दोषमुक्त होकर ऊंचा उठने का प्रयास करते हैं लेकिन  वह यह भूल जाते हैं कि-----
“ स्वयं  को समझदार समझो लेकिन दूसरों को मूर्ख समझने की  मूर्खता कभी नहीं करनी चाहिए|”
यदि सामने वाला व्यक्ति समझदार हुआ तो उसकी नजरों में दोषारोपण करने वाले की क्या स्थिति होगी? इस बात पर अमूमन हम विचार ही नहीं करते हैं| रिश्ता कितना भी प्रगाढ़ हो, दोषारोपण करने कि आदत के चलते आपसी  रिश्ते पल भर में कभी न भरने वाली दरार और फासले पैदा कर देते हैं| भले ही सामने वाला व्यक्ति  तर्क-वितर्क न करे या  सफाई पेश ना करें लेकिन सत्यता को समझते ही  अपने दिलो दिमाग से वह उस व्यक्ति से  हमेशा के लिए दूरी बना लेता है परंतु इस बात से अंजान व  अज्ञानता के कारण दोषारोपण करने वाला खुद को दोषमुक्त साबित करके  स्वयं की नजरों में ऊंचा उठा मानने लगता है|
जबकि इससे इतर , यदि योग्य, प्रतिभावान व श्रेष्ठ व्यक्ति से कोई गलती हो जाती है तो वह दूसरों में दोष ना देखते हुए खुद के अंदर झांकने का प्रयास करता है और यही आत्म विश्लेषण की प्रवृत्ति उसे आत्म सुधार की ओर अग्रसर करती है  अपने इसी गुण के कारण वह व्यक्ति   श्रेष्ठ, प्रतिभाशाली व योग्य कहलाता है अन्य व्यक्तियों की अपेक्षा| कुछ व्यक्तियों का तो कार्य ही यही होता है कि अपने दोषों से अनजान रहकर दूसरों के ही दोष व  कमियां निकालना…….
कबीर दास जी ने कहा है कि----
“ दोष पराए देख के, चले हसंत हसंत
अपने याद न आवई, जाको आदि ना अंत”
याद रखें की योग्यता दूसरों में कमियां ढूंढने से नहीं बल्कि स्वयं के दोषों को समझ कर उन्हें दूर करने  से आती है |
व्यक्ति को अंतर्मुखी होना चाहिए ।अंतर्मुखी मतलब अपने भीतर झांकना जो व्यक्ति बाहर कि ओर झाँकने वाले होते हैं उनके सुख व ख़ुशी के भाव  क्षणिक व अस्थाई होते हैं ।अपने अन्दर झाँकने वाले व्यक्ति आत्मजाग्रत व आत्मसुधारक होते हैं।


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Thursday, October 20, 2016

राष्ट्रहित सर्वोपरि ,या सस्ता माल

राष्ट्रहित से पहले तो कुछ भी नहीं फिर चाहे प्राणों की आहुति हो या व्यक्तिगत हित ही क्यों ना हो?जब  राष्ट्र ही शक्तिहीन और खोखला हो जाएगा तो व्यक्तिगत वजूद भी शून्य हो जाएगा, व्यक्ति  का अस्तित्व ही खत्म हो जाएगा। इसलिए राष्ट्रहित सर्वोपरि है और वैसे भी जिन्हें अपनी कीमत का अंदाजा नहीं होता वहीं सस्ते में बिक जाया करते हैं। सस्ते माल की ना तो कोई गारंटी होती है ना कोई वारंटी। सस्ते माल को खरीदते वक्त भी, भारतीयों के जेहन में शंका होती है उसके टिकाऊपन को लेकर ,फिर भी लोभवश हम सस्ते माल के बाहरी आकर्षण के जाल में  ग्रसित होकर आकर्षित हो जाते हैं और खरीदते हैं फिर चाहे वह सस्ता माल रास्ते में ही ,घर आते ही या एक दो बार के प्रयोग के बाद ही खराब हो जाए,टूट जाए ।कहा भी जाता है कि “महंगा रोए एक बार ,सस्ता रोए बार बार”


हाल ही में चीन ने पाकिस्तान का सहयोग किया है लेकिन हम भारतीय फिर भी सस्ते माल के चक्कर में चीन का सस्ता माल खरीद-खरीद कर अपने देश का पैसा चीन भेज कर भारत को कमजोर और चीन को आर्थिक रुप से शक्तिशाली बना रहे हैं, चीन की सेना को मजबूत करने में पूरा सहयोग कर रहे हैं।
जबकि चीन को बिना गोली चलाए सबक  सिखाने का नायाब तरीका है कि प्रत्येक भारतीय चीनी सामान का बहिष्कार करे क्योंकि विश्व का सबसे बड़ा बाजार भारत है किसी भी देश से यदि इतना बड़ा बाजार  छिन जाये तो संबंधित देश का आधा पतन तो ऐसे ही हो जाएगा ,बशर्ते कि इस बात को प्रत्येक भारतीय को समझना होगा और याद रखना होगा कि “राष्ट्रहित सर्वोपरि है,ना कि सस्ता माल”

हम भारतीयों को जापान से सीखना होगा, कि अमरीका के परमाणु हमले में लगभग ख़त्म हो चुके देश जापान ने महज कुछ ही वर्षों में अपनी देश भक्ति से दृढ़संकल्पित होकर  अमरीका को आर्थिक विकास में पीछे छोड़ दिया| हमले का बदला लेने के लिए अमरीका की लाख गुनी उन्नत वस्तुएं खरीदने के स्थान पर, अपने ही देश की वस्तुएं उपयोग की तथा अपने देश को  समर्थ बनाया ताकि अमरीका से भी अधिक  उच्च कोटि की वस्तुओं  का निर्माण कर सकें

सस्ता चीनी सामान एक जहर की तरह है, हम भारतीयों के लिए …. जितनी जल्दी, द्रढ़ता और देश भक्ति के साथ चीनी सामान का बहिष्कार करेंगे,उतना ही  हमारे व हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए अच्छा होगा|

आपको जानकर अच्छा लगेगा कि देश के कुछ हिस्सों के व्यापारी संगठनों ने इस बार  दीपावली में  चीनी सामान के बहिष्कार की घोषणा की है जो कि एक  सराहनीय कदम  है| इसी तरह की पहल देश के सभी व्यापारियों तथा नागरिको को दिखानी चाहिए| यदि हम व्यापारी चीनी सामान  ना बेचने का संकल्प कर लें तथा नागरिक चीनी सामान ना खरीदने का तो वह दिन दूर नहीं जब  कुछ ही समय में  चीन की अर्थव्यवस्था चरमरा  जाएगी और हमसे नफरत करने वाले  देश पाकिस्तान का समर्थन बंद कर देगा| तभी अपना देश असली दीवाली मना सकेगा|
अपील:--स्वदेशी अपनाओ,राष्ट्र को शक्तिशाली बनाओ।

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Tuesday, October 18, 2016

सादगी में ही सुंदरता है

अपनी संस्कृति को भूलकर आज युवा पीढ़ी पाश्चात्य संस्कृति का अंधानुकरण करने को ही सभ्य,आधुनिक व सुशिक्षित समझने की भूल कर रही है।वह भूल रही है कि…….
हमारी आत्मिक उन्नति और नैतिकता…. यह एक नई संस्कृति, नई सभ्यता का आधार है ,यह भी सत्य है कि स्त्री की आत्मशक्ति ही इस आधुनिकता के   बवंडर  से तहस-नहस हुए संसार का पुनर्निर्माण कर सकती है और चाहे तो और गहरे गर्त में भी गिरा सकती है | स्त्री की पवित्रता ,ममता, उसकी आध्यात्मिक चेतना,उसके अंदर भरा हुआ सहानुभूति, हमदर्दी का अथाह सागर और उसका मौन त्याग... यह सब ईश्वरीय गुण या यूं कहें  कि दैवीय गुण पूरी मानवता को ऊंचा उठाने में सक्षम है, जिससे कि संपूर्ण विश्व में अमन ,चैन और आनंद हिलोरे लेने लगे।
स्त्रियां सामाजिक चेतना का केंद्र हैं   अतः स्त्रियों को शिक्षा प्रणाली के माध्यम से युवाओं -युवतियों को आधुनिक परिधानों के प्रति उनके आकर्षण और मोह को तोड़ना सिखाना होगा । हमें, हमारे घरों के वातावरण व आस-पास के परिवेश में आवश्यक बदलाव लाने होंगे । शिक्षा सबसे सशक्त हथियार है ,जिससे खुद को व दुनिया को बदला जा सकता है ।ईमानदारी से दें|

मैंने अनुभव किया है कि एक परंपरागत सोच को बदलना आसान नहीं होता है लेकिन गलत व रुढ़िवादी परंपराओं को, जो हमारे समाज ,देश व राष्ट्र के लिए अभिशाप हैं ,उन्हें तोड़ना और बदलना नितांत आवश्यक है यह सब मुमकिन तभी हो पाएगा जब स्त्री शक्ति अपना पूरा योगदान दें|   

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Saturday, October 15, 2016

बोरियत एक अभिशाप

जब मन में रचनात्मकता और नवीनता का अभाव होता है तो एक ही तौर- तरीके का काम करते हुये मन मैं उबाऊपन आ जाता है । हालांकि  कुछ लोगों का इसमें भी मन लगता है । और वे एक ही तरह के  कार्यों को  बिना शिकायत किए  लंबे अरसे तक करते रहते हैं लेकिन जब भी उनके कार्य को छुड़वा कर उन्हें नया  करने को देते हैं तो वह आनाकानी करने लगते हैं।
बोरियत आखिर है क्या?
दरअसल बोरियत भावनाओं का ऐसा खालीपन है जिसमें किसी कार्य में  कोई उत्साह कोई उमंग नजर नहीं आता ।   बोरियत के साथ शायद ही कोई पसंद करता हो ?क्योंकि इसमें कोई रचनात्मकता, कोई नवीनता नहीं होती है ।एक ही कार्य को बार-बार करने से बोरियत होती है कभी-कभी एक ही  ढ़र्रे में चलने वाली हमारी जीवन  शैली   ही हमारी बोरियत का कारण  बन जाती है ।
बोरियत भरी जिंदगी से बाहर निकलना बहुत जरूरी है और बोरियत भरी जिंदगी से बाहर निकलने के लिए जरूरी है कि हम अपने हर कार्य में रचनात्मकता लाएं , नवीनता लाएं।
अपने कार्य को मन लगाकर करें।
दूसरा तरीका बोरियत को कम करने का है जिस  कार्य को करने से बोरियत हो रही है उसे और ज्यादा समय  तक करें ज्यादा समय तक उसी कार्य को करने से भी  बोरियत से निजात मिल जाती है।
अपने अंदर सुप्तावस्था मैं पड़ी क्रियाशीलता व रचनात्मकता को जगाने के लिए हमें योगा व ध्यान का सहारा लेना चाहिए। कहा जाता  है कि “व्यस्त रहें, मस्त रहें"
बोरियत हमें निष्क्रिय कर  देती है, मानसिक रूप से अपंग कर देती है इससे छुटकारा हमें सिर्फ और सिर्फ सक्रियता ही   दिला सकती है इसलिए खाली नहीं बैठना चाहिए। अपने हर कार्य में नवीनता लाएं और अधिक रचनात्मकता  लाएं ताकि  जीवन को उमंग, उत्साह और विभिन्न रंगों से भर सकें। 


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Monday, October 10, 2016

तन्हाई का दंश झेलते बुजुर्ग

वर्तमान की भागमभाग जिंदगी में इंसान इतना व्यस्त है कि उसकी मंजिल सिर्फ और सिर्फ दौलत, शोहरत और भौतिक सुख  सुविधाएं प्राप्त करना ही रह गया है ।इसमें कोई शक नहीं कि आज समृद्धि का प्रतिशत बढ़ा है, किंतु मनुष्य ने यह सब सुख सुविधाएं पाने के लिए बहुत बड़ी कीमत चुकाई है ,मसलन आपसी रिश्तो की उपेक्षा, स्वार्थी मनोवृति, अकेलापन, धन लोलुपता के संकुचित दायरे में सिमट कर रह गई हैं।
मां बाप, भाई बहन, बुजुर्ग आदि सब रिश्ते बेमानी लगने लगे हैं इन रिश्तो की आत्मीयता, पवित्रता, मधुरता, अपनत्व अब इतिहास बन कर रह गया हैं।
पुरानी सभ्यता, संस्कृति अब दम तोड़ती नजर आ रही है|  इसके लिए कौन दोषी है? कौन जिम्मेदार है?
आधुनिकता और स्वार्थ लोलुपता की नई संस्कृति राष्ट्र के लिए “अभिशाप या वरदान” क्या सिद्ध होगी? यह एक अनसुलझा प्रश्न है इसका उत्तर तो शायद भविष्य के गर्भ में ही छुपा है और शायद नहीं भी…….
इसका उत्तर मनुष्य को वर्तमान में ही समय-समय पर  मिलता रहता है, पर शायद आंखें होते हुए भी हम देख नहीं पा रहे हैं और बुद्धि विवेक होते हुए भी समझ नहीं पा रहे हैं|



पाश्चात्य संस्कृति का अंधानुकरण करके हम स्वयं को व अपने बच्चों को आधुनिकता, सभ्यता के झूठे आडंबर से सराबोर करके स्वयं को सभ्य सुसंस्कृत दिखाने का दिखावा करने का प्रयास कर रहे हैं जबकि आज की सभ्यता ने जीवन को बाहरी व झूठे आडंबर,  उग्रता, तनाव व भौतिकता, व्यापारिक मनोवृत्ति से दमित कर रखा है| वर्तमान सभ्यता ने हमें हमारे संसर्ग में आने वाली ईमानदारी, नेक नीयती ,सज्जनता और शराफत जैसे दिव्य गुणों से कोसों दूर कर दिया है। मेरे विचार से वर्तमान शिक्षा प्रणाली भी काफी हद तक जिम्मेदार है छात्र छात्राएं स्कूल की परीक्षा अच्छे नंबरों से  पास कर लें, परंतु उनके जीवन का एकमात्र लक्ष्य होता है, अधिक से अधिक पैसा कमाना…... तरीका चाहे जो भी हो…... सही या गलत
वह नहीं जानते की सच्ची खुशी या सुख तभी मिलता है जब हम अपनी सभ्यता संस्कृति को बरकरार रखते हुए अपने तुच्छ अहंकार को मिटाकर घर के बुजुर्गों को यथोचित सम्मान, जनकल्याण व परिवार कल्याण के लिए समर्पित होने में है।आज भौतिकता संपूर्ण विश्व को  अपने  लोभ के जंजाल में बाँधती जा रही है।
महात्मा बुद्ध  80 वर्ष की आयु तक इस पृथ्वी पर भ्रमण करके लोगों के जीवन को ज्ञान से भरते रहे और उन्हें नई राह दिखाते रहे।
अंग्रेजी शिक्षा हमे लोभ में लिप्त कर कामी, स्वार्थी ,स्वच्छंद और आचार -विचारहींन बना रही है ।इस नकली विद्या ने हमसे हमारी पहचान छीन ली है| सादगी और आध्यात्मिकता में हमारी वैदिक शिक्षा आज की अंग्रेजी शिक्षा से कई गुना ज्यादा बेहतर और महान थी।अंग्रेजी शिक्षा से आज की युवा पीढ़ी मानसिक रूप से पंगु होती चली जा रही है ।
अगर आज राष्ट्र को विनाश से बचाना है तो आधुनिक शिक्षा प्रणाली में एक बड़ा बदलाव करने की आवश्यकता है|
इसी का जीता-जागता उदाहरण हमारे सामने है--- वृद्धावस्था आश्रम
इससे ज़्यादा शर्मनाक और क्या बात हो सकती है,हम भारतवासियों के लिए????


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Saturday, October 8, 2016

मन की चंचलता {भटकाव}

मन भ्रामक है, चंचल है, मन भागता है चहुंओर, बार-बार भटकता है| विचारों का प्रवाह अनवरत हमारे मानसिक पटल पर होता रहता है| मन इतना बलवान है कि हमें इस पर लगाम लगाने में असमर्थता का अनुभव होता है| चाह कर भी मन के भटकाव को नियंत्रित करना बेहद कठिन जान पड़ता है|
वास्तव में मन की गति बड़ी तीव्र होती है, इतनी तीव्र कि चंद पलों में हजारो मील की यात्रा कर वापस आ सकता है| दरअसल मन ज़्यादातर भ्रामक परिकल्पनाएं करता है और हम उसे रोकने में असमर्थ रहते हैं| मन हमें बार-बार विचलित करता है|
प्रश्न उठता है, आखिर  मन  के भटकाव को कैसे नियंत्रित किया जाए?
एकाग्रता द्वारा मन की चंचलता को नियंत्रित किया जा सकता है| अर्जुन ने एकाग्रता के द्वारा ही मछली की आंख पर निशाना साधने में सफलता पाई थी| अर्जुन ने तेल के प्रवाह में गोल घूमती मछली की छवि मात्र देखकर अपना बाण चलकर ,मन की एकाग्रता की चमत्कारिक शक्ति को प्रमाणित किया था ।दरअसल चित्त की वृत्तियां ही हमें चंचल बनाती हैं|
स्वाध्याय की वृत्ति विकसित करने से हमारा मन निरंतर श्रेष्ठ विचारों से ओतप्रोत रहता है तथा हमारी धारणा को मजबूत आधार भी मिलता है|
योग और ध्यान द्वारा हम  अपने मन के भटकाव को नियंत्रित कर सकते हैं| एकाग्रता बढ़ाने में आत्मसंयम योग और ध्यान रामबाण औषधि सिद्ध हुए हैं|
दरअसल मन का भ्रामक होना हमारी मानसिक रुग्णता का परिचायक है| क्योंकि हमारा अपने मन पर नियंत्रण ही नहीं है| हमें कोशिश करनी चाहिए कि किसी की कुचेष्टाओं में फंसकर अपने मन को भ्रमित न होने दें और यह तभी संभव है जब हमारे  अंदर  स्वाध्याय की वृत्ति विकसित हो |अधूरा या  अपर्याप्त  ज्ञान  ही मन के भटकाव एक अहम कारण है| नतीजा विचारों का भटकाव जो कि हमारे दुखों का मूल करण है।
कबीर दास जी ने कहा है --
साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय|
सार-सार को गहि रहे, थोथा देई उड़ाय |”
यदि हम कबीर दास जी के कहे हुए शब्दों पर ध्यान दें, इन पर अमल  करें तो हमारे मन का भटकाव असंभव है और मन विचलित नहीं होगा तो सफलता हमारे आगे होगी और हम लक्ष्य  की ओर निरंतर अग्रसर होते रहेंगे और जो मुकाम हमें चाहिए उसे हासिल कर ही लेंगे|
अत्यावश्यक है--मन की एकाग्रता, योग और ध्यान ऐसी आधारशिला है जिसको अपनी दिनचर्या में शामिल करके कोई भी व्यक्ति अपने भाग्य का निर्माण कर सकता है| ध्यान का अभ्यास करते रहने से कुछ दिन बाद हमें एहसास होने लगेगा कि हमारे अंतर्मन में एक अलौकिक शक्ति और अक्षय ऊर्जा का भंडार समाया हुआ है जिसे हम अभी तक निष्फल  कर्मों के कारण जाया करते आ रहे थे और ऐसा करने से हम गंतव्य तक पहुंचने में असफल हो रहे थे|

लक्ष्य प्राप्ति के लिए मन का भटकाव समूल नष्ट करके एकाग्रचित्त होना अत्यावश्यक है| एकाग्रता का मतलब है, किसी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए एक ही चीज पर अपने ध्यान को केंद्रित करना| जब हम ध्यान द्वारा अपने मन को एकाग्र करने में सफल हो जाएंगे तो वह दिन दूर नहीं जब हम अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल हो जाएंगे|  


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