Monday, October 10, 2016

तन्हाई का दंश झेलते बुजुर्ग

वर्तमान की भागमभाग जिंदगी में इंसान इतना व्यस्त है कि उसकी मंजिल सिर्फ और सिर्फ दौलत, शोहरत और भौतिक सुख  सुविधाएं प्राप्त करना ही रह गया है ।इसमें कोई शक नहीं कि आज समृद्धि का प्रतिशत बढ़ा है, किंतु मनुष्य ने यह सब सुख सुविधाएं पाने के लिए बहुत बड़ी कीमत चुकाई है ,मसलन आपसी रिश्तो की उपेक्षा, स्वार्थी मनोवृति, अकेलापन, धन लोलुपता के संकुचित दायरे में सिमट कर रह गई हैं।
मां बाप, भाई बहन, बुजुर्ग आदि सब रिश्ते बेमानी लगने लगे हैं इन रिश्तो की आत्मीयता, पवित्रता, मधुरता, अपनत्व अब इतिहास बन कर रह गया हैं।
पुरानी सभ्यता, संस्कृति अब दम तोड़ती नजर आ रही है|  इसके लिए कौन दोषी है? कौन जिम्मेदार है?
आधुनिकता और स्वार्थ लोलुपता की नई संस्कृति राष्ट्र के लिए “अभिशाप या वरदान” क्या सिद्ध होगी? यह एक अनसुलझा प्रश्न है इसका उत्तर तो शायद भविष्य के गर्भ में ही छुपा है और शायद नहीं भी…….
इसका उत्तर मनुष्य को वर्तमान में ही समय-समय पर  मिलता रहता है, पर शायद आंखें होते हुए भी हम देख नहीं पा रहे हैं और बुद्धि विवेक होते हुए भी समझ नहीं पा रहे हैं|



पाश्चात्य संस्कृति का अंधानुकरण करके हम स्वयं को व अपने बच्चों को आधुनिकता, सभ्यता के झूठे आडंबर से सराबोर करके स्वयं को सभ्य सुसंस्कृत दिखाने का दिखावा करने का प्रयास कर रहे हैं जबकि आज की सभ्यता ने जीवन को बाहरी व झूठे आडंबर,  उग्रता, तनाव व भौतिकता, व्यापारिक मनोवृत्ति से दमित कर रखा है| वर्तमान सभ्यता ने हमें हमारे संसर्ग में आने वाली ईमानदारी, नेक नीयती ,सज्जनता और शराफत जैसे दिव्य गुणों से कोसों दूर कर दिया है। मेरे विचार से वर्तमान शिक्षा प्रणाली भी काफी हद तक जिम्मेदार है छात्र छात्राएं स्कूल की परीक्षा अच्छे नंबरों से  पास कर लें, परंतु उनके जीवन का एकमात्र लक्ष्य होता है, अधिक से अधिक पैसा कमाना…... तरीका चाहे जो भी हो…... सही या गलत
वह नहीं जानते की सच्ची खुशी या सुख तभी मिलता है जब हम अपनी सभ्यता संस्कृति को बरकरार रखते हुए अपने तुच्छ अहंकार को मिटाकर घर के बुजुर्गों को यथोचित सम्मान, जनकल्याण व परिवार कल्याण के लिए समर्पित होने में है।आज भौतिकता संपूर्ण विश्व को  अपने  लोभ के जंजाल में बाँधती जा रही है।
महात्मा बुद्ध  80 वर्ष की आयु तक इस पृथ्वी पर भ्रमण करके लोगों के जीवन को ज्ञान से भरते रहे और उन्हें नई राह दिखाते रहे।
अंग्रेजी शिक्षा हमे लोभ में लिप्त कर कामी, स्वार्थी ,स्वच्छंद और आचार -विचारहींन बना रही है ।इस नकली विद्या ने हमसे हमारी पहचान छीन ली है| सादगी और आध्यात्मिकता में हमारी वैदिक शिक्षा आज की अंग्रेजी शिक्षा से कई गुना ज्यादा बेहतर और महान थी।अंग्रेजी शिक्षा से आज की युवा पीढ़ी मानसिक रूप से पंगु होती चली जा रही है ।
अगर आज राष्ट्र को विनाश से बचाना है तो आधुनिक शिक्षा प्रणाली में एक बड़ा बदलाव करने की आवश्यकता है|
इसी का जीता-जागता उदाहरण हमारे सामने है--- वृद्धावस्था आश्रम
इससे ज़्यादा शर्मनाक और क्या बात हो सकती है,हम भारतवासियों के लिए????


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4 comments:

  1. धयानदेने योग्य लेख।बहुत बढ़िया लेख

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  2. शिक्षाप्रद लेख जिसकी वर्तमान परिवेश में अतिआवश्यकता है।

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