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Sunday, October 23, 2016

अस्तित्व


 व्यक्ति की स्वयं पर आस्था ही अस्तित्व का सृजन करती है| अस्तित्व मतलब ,आस्था+ तत्व{ गुण}, ये वो गुण होते हैं जो  सृष्टि के हर  व्यक्ति में आंतरिक या अंतर्मुखी होते हैं  अर्थात अपने मूलभूत गुणों के प्रति आस्था ही अस्तित्व का प्रथम सोपान है|
इसका दूसरा पहलू (बाह्यगुण)  जो कि किसी भी व्यक्ति को जन्म, जाति, स्थान, वर्ण, लिंग, परिवेश,परवरिश   आदि  से प्रभावित होता है । लेकिन इन बाहरी कारकों से अप्रभावित रहकर जो व्यक्ति अपनी दिशा में आगे बढ़ता है उसकी ज़िन्दगी का हर लम्हा सुख और शांति से व्यतीत होता है अत: इन बाहरी तत्वों से  ऊपर उठकर अपने मूलभूत गुणों का विकास कर लेना ही अस्तित्व है| अपने मूलभूत गुणों को बाहरी तत्वों के कारण खत्म नहीं होने देना चाहिए वरन अपने आंतरिक गुणों को पहचान कर, समझ कर उन्हें सही दिशा देने का प्रयास जारी रखना चाहिए| अस्तित्व कभी भी  अस्थाई या  निर्भर नहीं हो सकता है जरूरत है तो सिर्फ अपने अस्तित्व को पल्लवित करने की|
उदाहरणार्थ शिक्षक का अस्तित्व------ जो छात्र / छात्रा को उनके अस्तित्व से पहचान कराने में सहायक हो,सही मायने में वही शिक्षक/ शिक्षिका है क्योंकि जब शिक्षक / शिक्षिका का अस्तित्व नहीं रहेगा फिर भी उनकी छवि उनके छात्र / छात्राओं में प्रतिबिंबित होगी| वजह एक शिक्षक ही है जो अपने शब्दों से, अभिव्यक्ति के माध्यम से,अपने व्यक्तित्व से उदाहरण प्रस्तुत कर शाश्वत मूल्यों का निर्धारण करता है जिससे सृष्टि का अभ्युदय होता है|
अत्यावश्यक है कि हर व्यक्ति में  चिंतन, काम के प्रति रुचि, नवीनता, सकारात्मकता, रचनात्मकता एवं किए गए कार्य की गुणवत्ता व अपने अस्तित्व की उपयोगिता इन सभी मूल्यों का होना जरूरी है तभी वह अपने अस्तित्व को जीते जी व मरने के बाद भी कायम रख सकता है और सही मायने में इसी प्रकार का जीवन ही सार्थक जीवन कहलाता है| निरर्थक, निरुद्देश्य लंबे जीवन की कोई उपयोगिता नहीं है उदाहरणार्थ जिस प्रकार शाहबलूत का वृक्ष 300 साल तक एक लट्ठे की भांति खड़ा रहता है अपने इतने लंबे जीवन काल में ना किसी राहगीर को छाया प्रदान करता है और ना ही किसी को फल देता है और अंत में इतनी लंबी जिंदगी जीने के बाद  एक लट्ठे  की भांति गिर कर ख़त्म हो जाता है, वहीँ दूसरी ओर कुमुदिनी का फूल जिसकी जिंदगी सिर्फ 1 दिन होती है सिर्फ 1 दिन के लिए ही वह खिलता  है और शाम को मुरझा जाता है लेकिन अपनी खूबसूरती से, हर देखने वाले व्यक्ति की आंखों को, उसकी आत्मा को व दिलो-दिमाग को खुशी व खुशबू से प्रफुल्लित कर देता है| अपनी छोटी सी जिंदगी में ही कुमुदिनी का फूल अनगिनत लोगों  को खुशियां दे जाता है| अतः अति आवश्यक है कि हम अपने अस्तित्व को पहचान कर उसी के अनुरुप कार्य करें जिससे कि हमारा अस्तित्व मरने के बाद भी अमर रहे।


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Saturday, October 15, 2016

बोरियत एक अभिशाप

जब मन में रचनात्मकता और नवीनता का अभाव होता है तो एक ही तौर- तरीके का काम करते हुये मन मैं उबाऊपन आ जाता है । हालांकि  कुछ लोगों का इसमें भी मन लगता है । और वे एक ही तरह के  कार्यों को  बिना शिकायत किए  लंबे अरसे तक करते रहते हैं लेकिन जब भी उनके कार्य को छुड़वा कर उन्हें नया  करने को देते हैं तो वह आनाकानी करने लगते हैं।
बोरियत आखिर है क्या?
दरअसल बोरियत भावनाओं का ऐसा खालीपन है जिसमें किसी कार्य में  कोई उत्साह कोई उमंग नजर नहीं आता ।   बोरियत के साथ शायद ही कोई पसंद करता हो ?क्योंकि इसमें कोई रचनात्मकता, कोई नवीनता नहीं होती है ।एक ही कार्य को बार-बार करने से बोरियत होती है कभी-कभी एक ही  ढ़र्रे में चलने वाली हमारी जीवन  शैली   ही हमारी बोरियत का कारण  बन जाती है ।
बोरियत भरी जिंदगी से बाहर निकलना बहुत जरूरी है और बोरियत भरी जिंदगी से बाहर निकलने के लिए जरूरी है कि हम अपने हर कार्य में रचनात्मकता लाएं , नवीनता लाएं।
अपने कार्य को मन लगाकर करें।
दूसरा तरीका बोरियत को कम करने का है जिस  कार्य को करने से बोरियत हो रही है उसे और ज्यादा समय  तक करें ज्यादा समय तक उसी कार्य को करने से भी  बोरियत से निजात मिल जाती है।
अपने अंदर सुप्तावस्था मैं पड़ी क्रियाशीलता व रचनात्मकता को जगाने के लिए हमें योगा व ध्यान का सहारा लेना चाहिए। कहा जाता  है कि “व्यस्त रहें, मस्त रहें"
बोरियत हमें निष्क्रिय कर  देती है, मानसिक रूप से अपंग कर देती है इससे छुटकारा हमें सिर्फ और सिर्फ सक्रियता ही   दिला सकती है इसलिए खाली नहीं बैठना चाहिए। अपने हर कार्य में नवीनता लाएं और अधिक रचनात्मकता  लाएं ताकि  जीवन को उमंग, उत्साह और विभिन्न रंगों से भर सकें। 


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