मन भ्रामक
है, चंचल है, मन भागता है चहुंओर, बार-बार भटकता है| विचारों का
प्रवाह अनवरत हमारे मानसिक पटल पर होता रहता है| मन इतना
बलवान है कि हमें इस पर लगाम लगाने में असमर्थता का अनुभव होता है| चाह कर भी
मन के भटकाव को नियंत्रित करना बेहद कठिन जान पड़ता है|
वास्तव में
मन की गति बड़ी तीव्र होती है, इतनी तीव्र कि चंद पलों में हजारो मील की
यात्रा कर वापस आ सकता है| दरअसल मन ज़्यादातर भ्रामक परिकल्पनाएं
करता है और हम उसे रोकने में असमर्थ रहते हैं| मन हमें
बार-बार विचलित करता है|
प्रश्न उठता
है,
आखिर मन के भटकाव को
कैसे नियंत्रित किया जाए?
एकाग्रता
द्वारा मन की चंचलता को नियंत्रित किया जा सकता है| अर्जुन ने
एकाग्रता के द्वारा ही मछली की आंख पर निशाना साधने में सफलता पाई थी| अर्जुन ने
तेल के प्रवाह में गोल घूमती मछली की छवि मात्र देखकर अपना बाण चलकर ,मन की
एकाग्रता की चमत्कारिक शक्ति को प्रमाणित किया था ।दरअसल चित्त की वृत्तियां ही
हमें चंचल बनाती हैं|
स्वाध्याय
की वृत्ति विकसित करने से हमारा मन निरंतर श्रेष्ठ विचारों से ओतप्रोत रहता है तथा
हमारी धारणा को मजबूत आधार भी मिलता है|
योग और
ध्यान द्वारा हम अपने मन के भटकाव को नियंत्रित कर सकते
हैं| एकाग्रता बढ़ाने में आत्मसंयम योग और ध्यान रामबाण औषधि सिद्ध हुए हैं|
दरअसल मन का
भ्रामक होना हमारी मानसिक रुग्णता का परिचायक है| क्योंकि
हमारा अपने मन पर नियंत्रण ही नहीं है| हमें कोशिश करनी चाहिए कि किसी की
कुचेष्टाओं में फंसकर अपने मन को भ्रमित न होने दें और यह तभी संभव है जब हमारे अंदर स्वाध्याय
की वृत्ति विकसित हो |अधूरा या अपर्याप्त ज्ञान ही मन के
भटकाव एक अहम कारण है| नतीजा विचारों का भटकाव जो कि हमारे
दुखों का मूल करण है।
कबीर दास जी
ने कहा है --
“साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय|
सार-सार को
गहि रहे, थोथा देई उड़ाय |”
यदि हम कबीर
दास जी के कहे हुए शब्दों पर ध्यान दें, इन पर अमल करें तो
हमारे मन का भटकाव असंभव है और मन विचलित नहीं होगा तो सफलता हमारे आगे होगी और हम
लक्ष्य की ओर निरंतर अग्रसर होते रहेंगे और जो मुकाम हमें चाहिए उसे हासिल कर ही
लेंगे|
अत्यावश्यक
है--मन की एकाग्रता, योग और ध्यान ऐसी आधारशिला है जिसको अपनी
दिनचर्या में शामिल करके कोई भी व्यक्ति अपने भाग्य का निर्माण कर सकता है| ध्यान का
अभ्यास करते रहने से कुछ दिन बाद हमें एहसास होने लगेगा कि हमारे अंतर्मन में एक
अलौकिक शक्ति और अक्षय ऊर्जा का भंडार समाया हुआ है जिसे हम अभी तक निष्फल कर्मों के
कारण जाया करते आ रहे थे और ऐसा करने से हम गंतव्य तक पहुंचने में असफल हो रहे थे|
लक्ष्य
प्राप्ति के लिए मन का भटकाव समूल नष्ट करके एकाग्रचित्त होना अत्यावश्यक है| एकाग्रता का
मतलब है, किसी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए एक ही चीज पर अपने ध्यान को केंद्रित
करना| जब हम ध्यान द्वारा अपने मन को एकाग्र करने में सफल हो जाएंगे तो वह दिन
दूर नहीं जब हम अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल हो जाएंगे|
अपनों की जानकारी के लिए शेयर अवश्य करें|
Mann par hi to niyantran nahi hai
ReplyDeleteInspirational Article
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