Thursday, October 27, 2016

फिल्मी कलाकारों का राजनीतिक बयानबाजी उचित है या अनुचित

हमारे राष्ट्र के संविधान में नागरिकों को प्रदत्त मूल अधिकारों मैं से एक अधिकार है…... अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता


अपने विचारों की अभिव्यक्ति करने का अधिकार प्रत्येक भारतीय नागरिक को है फिर चाहे वह फिल्मी कलाकार हो या आम आदमी| फिल्मी कलाकारों का राजनीतिक बयानबाजी करना मेरे हिसाब से अनुचित नहीं है बशर्ते की बयानबाजी सकारात्मक हो ना की किसी दल विशेष, किसी व्यक्ति विशेष या किसी संप्रदाय विशेष के प्रति  निजी    बैर भाव,  ईर्ष्या, वैमनस्यता, द्वेष या बदले की भावना से ओतप्रोत  हो |

फिल्मी कलाकार भी  अपने  विचारों की  अभिव्यक्ति कर सकते हैं लेकिन किसी भी मुद्दे पर अपने विचार प्रकट करने से पहले यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि उनके विचारों से देश की एकता, अखंडता  व आंतरिक शांति को किसी भी प्रकार का खतरा उत्पन्न ना हो|

फिल्मी कलाकार विज्ञापन के करोड़ों रुपए लेकर कंपनियों को अरबों का फायदा पहुंचाते हैं तो उनका यह नैतिक कर्तव्य बनता है कि राजनीति के किसी भी मुद्दे पर  अपनी वास्तविक  राय निष्पक्ष रुप से जनता के सामने प्रस्तुत करें  क्योंकि देश-विदेश में करोड़ों  अनुयायी , प्रशंसक होते हैं उनके|फिल्मी कलाकारों का नैतिक कर्तव्य है कि वह समाज के सामने किसी भी मुद्दे का वास्तविक दर्पण प्रस्तुत करें जिससे कि  देश भी लाभांवित हो सके| युवा पीढ़ी पर फ़िल्मी कलाकारों की हर चीज़ या उनके मुँह से निकली हर बात का जादू सर चढ़कर बोलता है इसलिए युवा पीढ़ी को सही दिशा-निर्देशन का ख्याल रख कर ही बयानबाज़ी करनी चाहिए फ़िल्मी कलाकारों को।

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फिल्मी कलाकारों का राजनीतिक बयानबाजी उचित है या अनुचित

हमारे राष्ट्र के संविधान में नागरिकों को प्रदत्त मूल अधिकारों मैं से एक अधिकार है…... अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता


अपने विचारों की अभिव्यक्ति करने का अधिकार प्रत्येक भारतीय नागरिक को है फिर चाहे वह फिल्मी कलाकार हो या आम आदमी| फिल्मी कलाकारों का राजनीतिक बयानबाजी करना मेरे हिसाब से अनुचित नहीं है बशर्ते की बयानबाजी सकारात्मक हो ना की किसी दल विशेष, किसी व्यक्ति विशेष या किसी संप्रदाय विशेष के प्रति  निजी    बैर भाव,  ईर्ष्या, वैमनस्यता, द्वेष या बदले की भावना से ओतप्रोत  हो |

फिल्मी कलाकार भी  अपने  विचारों की  अभिव्यक्ति कर सकते हैं लेकिन किसी भी मुद्दे पर अपने विचार प्रकट करने से पहले यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि उनके विचारों से देश की एकता, अखंडता  व आंतरिक शांति को किसी भी प्रकार का खतरा उत्पन्न ना हो|

फिल्मी कलाकार विज्ञापन के करोड़ों रुपए लेकर कंपनियों को अरबों का फायदा पहुंचाते हैं तो उनका यह नैतिक कर्तव्य बनता है कि राजनीति के किसी भी मुद्दे पर  अपनी वास्तविक  राय निष्पक्ष रुप से जनता के सामने प्रस्तुत करें  क्योंकि देश-विदेश में करोड़ों  अनुयायी , प्रशंसक होते हैं उनके|फिल्मी कलाकारों का नैतिक कर्तव्य है कि वह समाज के सामने किसी भी मुद्दे का वास्तविक दर्पण प्रस्तुत करें जिससे कि  देश भी लाभांवित हो सके| युवा पीढ़ी पर फ़िल्मी कलाकारों की हर चीज़ या उनके मुँह से निकली हर बात का जादू सर चढ़कर बोलता है इसलिए युवा पीढ़ी को सही दिशा-निर्देशन का ख्याल रख कर ही बयानबाज़ी करनी चाहिए फ़िल्मी कलाकारों को।

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Tuesday, October 25, 2016

तनाव मुक्त जीवन जीने के लिए सुगंध का महत्व



खुशबू से तन -मन दोनों प्रफुल्लित होते हैं खुशबू हमें तनाव- मुक्त करती है ,राहत देती है और हमारे शरीर में सकारात्मक उर्जा का भी संचार करती है प्राकृतिक खुशबू जैसे फूलों की,फलों की, मिट्टी की खुशबू कई गुणों से भरपूर होती है | खुशबू विशेष का इस्तेमाल करके हम अपने आसपास के वातावरण को सजीव बना सकते हैं , नीरस जिंदगी में रस भर सकते हैं बेरंग जिंदगी में रंग भर सकते हैं | शांति व प्रेम का प्रतीक गुलाब अपनी सुगंध से मलिनता को दूर कर के स्वभाव में मिठास घोल देता है तथा अपनेपन का एहसास कराता है हम विभिन्न प्रकार की खुशबुओं का प्रयोग कर ऊर्जा के मार्ग को बदलकर या यूं कहें की नकारात्मक उर्जा के मार्ग को बदलकर उसकी जगह पर सकारात्मक ऊर्जा का संचार करके नई व मनोवांछित उर्जा को बनाए रख सकते हैं जैसे सुबह -शाम पूजा के लिए चंदन, गुलाब इत्यादि की भीनी -भीनी खुशबू वाली अगरबत्ती का इस्तेमाल कर सकते हैं इससे घर के प्रत्येक सदस्य खासकर तनावग्रस्त सदस्य का मन प्रसन्न रहेगा तथा घर का वातावरण भी तनावमुक्त रहेगा | हमारे आसपास प्राकृतिक खुशबू की कमी नहीं है मिट्टी की खुशबू ने सृष्टि में कई उपयोगी गुण प्रदान किए हैं जैसे मिट्टी पर बारिश की बूंदों से उत्पन्न भीनी -भीनी खुशबू हमारे तन और मन को रोमांचित कर देती है और तनाव को दूर करती है , ओस पड़ने के बाद सुबह के समय खेतों से मिलने वाली खुशबू आंखों की रोशनी बढ़ाने में कारगर होती है अतः हमें अपने शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य के लिए प्राकृतिक खुशबू का इस्तेमाल करना चाहिए |

मनुष्य की ज़रूरतें पूरी करने के लिए प्रकृति के पास सब कुछ उपलब्ध है ,आवश्यकता है तो सिर्फ इस बात की ,कि हम उपलब्ध संसाधनों का उपयोग बुद्धिमत्तापूर्ण करें |

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Monday, October 24, 2016

अलौकिक शक्ति



जब हम स्वयं को गहन अंधकार में घिरा हुआ पाते हैं और दूर तक कोई प्रकाश की किरण नजर नहीं आती उस वक्त सिर्फ हमारी स्वयं की आत्मा का प्रकाश ही हमारा मार्गदर्शन करता है ।सकारात्मक शक्ति से सृजन होता है और नकारात्मक शक्ति से विनाश ।कहा जाता है कि खाली दिमाग शैतान का घर होता है ।जब हम शारीरिक ,मानसिक क्रिया करना बंद कर देते हैं तब हमारे दिमाग में नकारात्मक विचार घर करते रहते हैं और हम सत्य का दामन छोड़ कर असत्य की ओर अग्रसर होते रहते हैं बुरी शक्तियां हमारे अंदर इस कदर घर कर चुकी होती हैं जिसके परिणाम स्वरुप झूठ ,फरेब ,मक्कारी, बदमाशी ,मार -काट ,हिंसा, धोखेबाजी, विश्वासघात इत्यादि नकारात्मक शक्तियां समाज को ही नहीं वरन पूरे राष्ट्र को अपनी गिरफ्त में ले लिया है। मनुष्य के अंदर कई प्रकार की शक्तियां विद्यमान होती हैं मसलन अर्थ शक्ति, ज्ञान शक्ति, जनशक्ति ,निष्ठा शक्ति ,कर्तव्यबोध शक्ति, आत्मशक्ति। इन सभी शक्तियों में सबसे ज्यादा सक्षम व बलशाली आत्मशक्ति ही है ।यदि हमारे अंदर आत्मशक्ति नहीं है तो सारी शक्तियां होते हुए भी सभी शक्तियां शून्यप्राय ही हैं।जब हमें हमारी आत्मशक्ति पर नियंत्रण होगा तभी हम अपनी आत्मशक्ति को सकारात्मक दिशा की तरफ मोड़कर सद्भावना कायम रखने में समर्थ होंगे और तभी हमारी प्रत्येक क्रियाविधि सृजनात्मक होगी अन्यथा दुर्भावना से ग्रसित होकर सिर्फ और सिर्फ विनाश का कारण।

वर्तमान स्थिति को देखते हुए आवश्यकता है कि हम अपनी आत्मशक्ति को इतना बढ़ाएं जिससे कि हमारे अंदर की नकारात्मक शक्तियां सुषुप्तावस्था में पहुंचकर हमेशा के लिए दम तोड़ दें और सकारात्मक शक्तियां इतनी प्रबल हो जाएं कि समूचे राष्ट्र में सुख,संतुष्टि,अमन - चैन,व हर व्यक्ति विश्व बंधुत्व की भावना से ओतप्रोत हो जाए ।

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Sunday, October 23, 2016

अस्तित्व


 व्यक्ति की स्वयं पर आस्था ही अस्तित्व का सृजन करती है| अस्तित्व मतलब ,आस्था+ तत्व{ गुण}, ये वो गुण होते हैं जो  सृष्टि के हर  व्यक्ति में आंतरिक या अंतर्मुखी होते हैं  अर्थात अपने मूलभूत गुणों के प्रति आस्था ही अस्तित्व का प्रथम सोपान है|
इसका दूसरा पहलू (बाह्यगुण)  जो कि किसी भी व्यक्ति को जन्म, जाति, स्थान, वर्ण, लिंग, परिवेश,परवरिश   आदि  से प्रभावित होता है । लेकिन इन बाहरी कारकों से अप्रभावित रहकर जो व्यक्ति अपनी दिशा में आगे बढ़ता है उसकी ज़िन्दगी का हर लम्हा सुख और शांति से व्यतीत होता है अत: इन बाहरी तत्वों से  ऊपर उठकर अपने मूलभूत गुणों का विकास कर लेना ही अस्तित्व है| अपने मूलभूत गुणों को बाहरी तत्वों के कारण खत्म नहीं होने देना चाहिए वरन अपने आंतरिक गुणों को पहचान कर, समझ कर उन्हें सही दिशा देने का प्रयास जारी रखना चाहिए| अस्तित्व कभी भी  अस्थाई या  निर्भर नहीं हो सकता है जरूरत है तो सिर्फ अपने अस्तित्व को पल्लवित करने की|
उदाहरणार्थ शिक्षक का अस्तित्व------ जो छात्र / छात्रा को उनके अस्तित्व से पहचान कराने में सहायक हो,सही मायने में वही शिक्षक/ शिक्षिका है क्योंकि जब शिक्षक / शिक्षिका का अस्तित्व नहीं रहेगा फिर भी उनकी छवि उनके छात्र / छात्राओं में प्रतिबिंबित होगी| वजह एक शिक्षक ही है जो अपने शब्दों से, अभिव्यक्ति के माध्यम से,अपने व्यक्तित्व से उदाहरण प्रस्तुत कर शाश्वत मूल्यों का निर्धारण करता है जिससे सृष्टि का अभ्युदय होता है|
अत्यावश्यक है कि हर व्यक्ति में  चिंतन, काम के प्रति रुचि, नवीनता, सकारात्मकता, रचनात्मकता एवं किए गए कार्य की गुणवत्ता व अपने अस्तित्व की उपयोगिता इन सभी मूल्यों का होना जरूरी है तभी वह अपने अस्तित्व को जीते जी व मरने के बाद भी कायम रख सकता है और सही मायने में इसी प्रकार का जीवन ही सार्थक जीवन कहलाता है| निरर्थक, निरुद्देश्य लंबे जीवन की कोई उपयोगिता नहीं है उदाहरणार्थ जिस प्रकार शाहबलूत का वृक्ष 300 साल तक एक लट्ठे की भांति खड़ा रहता है अपने इतने लंबे जीवन काल में ना किसी राहगीर को छाया प्रदान करता है और ना ही किसी को फल देता है और अंत में इतनी लंबी जिंदगी जीने के बाद  एक लट्ठे  की भांति गिर कर ख़त्म हो जाता है, वहीँ दूसरी ओर कुमुदिनी का फूल जिसकी जिंदगी सिर्फ 1 दिन होती है सिर्फ 1 दिन के लिए ही वह खिलता  है और शाम को मुरझा जाता है लेकिन अपनी खूबसूरती से, हर देखने वाले व्यक्ति की आंखों को, उसकी आत्मा को व दिलो-दिमाग को खुशी व खुशबू से प्रफुल्लित कर देता है| अपनी छोटी सी जिंदगी में ही कुमुदिनी का फूल अनगिनत लोगों  को खुशियां दे जाता है| अतः अति आवश्यक है कि हम अपने अस्तित्व को पहचान कर उसी के अनुरुप कार्य करें जिससे कि हमारा अस्तित्व मरने के बाद भी अमर रहे।


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दोषारोपण {एक मानसिक बीमारी}

आमतौर पर यह मानवीय  स्वभाव है कि उससे  कोई कार्य बिगड़ जाए या कोई गलती हो जाए तो वह उस कार्य को ठीक करने या  सुधारने के विषय में ना विचार कर वरन  तुरंत बिगड़े कार्य का दोष दूसरों पर मढ़ देता है यहां तक कि दोषारोपण करने में वह ईश्वर को भी नहीं बख्शता  तुरंत ईश्वर को और अपने भाग्य को कोसने लगता है या अपना दोष दूसरे व्यक्ति पर मढ़ने कि कोशिश करने लगता है
अक्सर देखने में आता है कि कुछ व्यक्ति अपने दोष को दूसरों पर डाल कर खुद की नज़रों में व अंतरात्मा में दोषमुक्त होकर ऊंचा उठने का प्रयास करते हैं लेकिन  वह यह भूल जाते हैं कि-----
“ स्वयं  को समझदार समझो लेकिन दूसरों को मूर्ख समझने की  मूर्खता कभी नहीं करनी चाहिए|”
यदि सामने वाला व्यक्ति समझदार हुआ तो उसकी नजरों में दोषारोपण करने वाले की क्या स्थिति होगी? इस बात पर अमूमन हम विचार ही नहीं करते हैं| रिश्ता कितना भी प्रगाढ़ हो, दोषारोपण करने कि आदत के चलते आपसी  रिश्ते पल भर में कभी न भरने वाली दरार और फासले पैदा कर देते हैं| भले ही सामने वाला व्यक्ति  तर्क-वितर्क न करे या  सफाई पेश ना करें लेकिन सत्यता को समझते ही  अपने दिलो दिमाग से वह उस व्यक्ति से  हमेशा के लिए दूरी बना लेता है परंतु इस बात से अंजान व  अज्ञानता के कारण दोषारोपण करने वाला खुद को दोषमुक्त साबित करके  स्वयं की नजरों में ऊंचा उठा मानने लगता है|
जबकि इससे इतर , यदि योग्य, प्रतिभावान व श्रेष्ठ व्यक्ति से कोई गलती हो जाती है तो वह दूसरों में दोष ना देखते हुए खुद के अंदर झांकने का प्रयास करता है और यही आत्म विश्लेषण की प्रवृत्ति उसे आत्म सुधार की ओर अग्रसर करती है  अपने इसी गुण के कारण वह व्यक्ति   श्रेष्ठ, प्रतिभाशाली व योग्य कहलाता है अन्य व्यक्तियों की अपेक्षा| कुछ व्यक्तियों का तो कार्य ही यही होता है कि अपने दोषों से अनजान रहकर दूसरों के ही दोष व  कमियां निकालना…….
कबीर दास जी ने कहा है कि----
“ दोष पराए देख के, चले हसंत हसंत
अपने याद न आवई, जाको आदि ना अंत”
याद रखें की योग्यता दूसरों में कमियां ढूंढने से नहीं बल्कि स्वयं के दोषों को समझ कर उन्हें दूर करने  से आती है |
व्यक्ति को अंतर्मुखी होना चाहिए ।अंतर्मुखी मतलब अपने भीतर झांकना जो व्यक्ति बाहर कि ओर झाँकने वाले होते हैं उनके सुख व ख़ुशी के भाव  क्षणिक व अस्थाई होते हैं ।अपने अन्दर झाँकने वाले व्यक्ति आत्मजाग्रत व आत्मसुधारक होते हैं।


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Thursday, October 20, 2016

राष्ट्रहित सर्वोपरि ,या सस्ता माल

राष्ट्रहित से पहले तो कुछ भी नहीं फिर चाहे प्राणों की आहुति हो या व्यक्तिगत हित ही क्यों ना हो?जब  राष्ट्र ही शक्तिहीन और खोखला हो जाएगा तो व्यक्तिगत वजूद भी शून्य हो जाएगा, व्यक्ति  का अस्तित्व ही खत्म हो जाएगा। इसलिए राष्ट्रहित सर्वोपरि है और वैसे भी जिन्हें अपनी कीमत का अंदाजा नहीं होता वहीं सस्ते में बिक जाया करते हैं। सस्ते माल की ना तो कोई गारंटी होती है ना कोई वारंटी। सस्ते माल को खरीदते वक्त भी, भारतीयों के जेहन में शंका होती है उसके टिकाऊपन को लेकर ,फिर भी लोभवश हम सस्ते माल के बाहरी आकर्षण के जाल में  ग्रसित होकर आकर्षित हो जाते हैं और खरीदते हैं फिर चाहे वह सस्ता माल रास्ते में ही ,घर आते ही या एक दो बार के प्रयोग के बाद ही खराब हो जाए,टूट जाए ।कहा भी जाता है कि “महंगा रोए एक बार ,सस्ता रोए बार बार”


हाल ही में चीन ने पाकिस्तान का सहयोग किया है लेकिन हम भारतीय फिर भी सस्ते माल के चक्कर में चीन का सस्ता माल खरीद-खरीद कर अपने देश का पैसा चीन भेज कर भारत को कमजोर और चीन को आर्थिक रुप से शक्तिशाली बना रहे हैं, चीन की सेना को मजबूत करने में पूरा सहयोग कर रहे हैं।
जबकि चीन को बिना गोली चलाए सबक  सिखाने का नायाब तरीका है कि प्रत्येक भारतीय चीनी सामान का बहिष्कार करे क्योंकि विश्व का सबसे बड़ा बाजार भारत है किसी भी देश से यदि इतना बड़ा बाजार  छिन जाये तो संबंधित देश का आधा पतन तो ऐसे ही हो जाएगा ,बशर्ते कि इस बात को प्रत्येक भारतीय को समझना होगा और याद रखना होगा कि “राष्ट्रहित सर्वोपरि है,ना कि सस्ता माल”

हम भारतीयों को जापान से सीखना होगा, कि अमरीका के परमाणु हमले में लगभग ख़त्म हो चुके देश जापान ने महज कुछ ही वर्षों में अपनी देश भक्ति से दृढ़संकल्पित होकर  अमरीका को आर्थिक विकास में पीछे छोड़ दिया| हमले का बदला लेने के लिए अमरीका की लाख गुनी उन्नत वस्तुएं खरीदने के स्थान पर, अपने ही देश की वस्तुएं उपयोग की तथा अपने देश को  समर्थ बनाया ताकि अमरीका से भी अधिक  उच्च कोटि की वस्तुओं  का निर्माण कर सकें

सस्ता चीनी सामान एक जहर की तरह है, हम भारतीयों के लिए …. जितनी जल्दी, द्रढ़ता और देश भक्ति के साथ चीनी सामान का बहिष्कार करेंगे,उतना ही  हमारे व हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए अच्छा होगा|

आपको जानकर अच्छा लगेगा कि देश के कुछ हिस्सों के व्यापारी संगठनों ने इस बार  दीपावली में  चीनी सामान के बहिष्कार की घोषणा की है जो कि एक  सराहनीय कदम  है| इसी तरह की पहल देश के सभी व्यापारियों तथा नागरिको को दिखानी चाहिए| यदि हम व्यापारी चीनी सामान  ना बेचने का संकल्प कर लें तथा नागरिक चीनी सामान ना खरीदने का तो वह दिन दूर नहीं जब  कुछ ही समय में  चीन की अर्थव्यवस्था चरमरा  जाएगी और हमसे नफरत करने वाले  देश पाकिस्तान का समर्थन बंद कर देगा| तभी अपना देश असली दीवाली मना सकेगा|
अपील:--स्वदेशी अपनाओ,राष्ट्र को शक्तिशाली बनाओ।

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Tuesday, October 18, 2016

सादगी में ही सुंदरता है

अपनी संस्कृति को भूलकर आज युवा पीढ़ी पाश्चात्य संस्कृति का अंधानुकरण करने को ही सभ्य,आधुनिक व सुशिक्षित समझने की भूल कर रही है।वह भूल रही है कि…….
हमारी आत्मिक उन्नति और नैतिकता…. यह एक नई संस्कृति, नई सभ्यता का आधार है ,यह भी सत्य है कि स्त्री की आत्मशक्ति ही इस आधुनिकता के   बवंडर  से तहस-नहस हुए संसार का पुनर्निर्माण कर सकती है और चाहे तो और गहरे गर्त में भी गिरा सकती है | स्त्री की पवित्रता ,ममता, उसकी आध्यात्मिक चेतना,उसके अंदर भरा हुआ सहानुभूति, हमदर्दी का अथाह सागर और उसका मौन त्याग... यह सब ईश्वरीय गुण या यूं कहें  कि दैवीय गुण पूरी मानवता को ऊंचा उठाने में सक्षम है, जिससे कि संपूर्ण विश्व में अमन ,चैन और आनंद हिलोरे लेने लगे।
स्त्रियां सामाजिक चेतना का केंद्र हैं   अतः स्त्रियों को शिक्षा प्रणाली के माध्यम से युवाओं -युवतियों को आधुनिक परिधानों के प्रति उनके आकर्षण और मोह को तोड़ना सिखाना होगा । हमें, हमारे घरों के वातावरण व आस-पास के परिवेश में आवश्यक बदलाव लाने होंगे । शिक्षा सबसे सशक्त हथियार है ,जिससे खुद को व दुनिया को बदला जा सकता है ।ईमानदारी से दें|

मैंने अनुभव किया है कि एक परंपरागत सोच को बदलना आसान नहीं होता है लेकिन गलत व रुढ़िवादी परंपराओं को, जो हमारे समाज ,देश व राष्ट्र के लिए अभिशाप हैं ,उन्हें तोड़ना और बदलना नितांत आवश्यक है यह सब मुमकिन तभी हो पाएगा जब स्त्री शक्ति अपना पूरा योगदान दें|   

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Saturday, October 15, 2016

बोरियत एक अभिशाप

जब मन में रचनात्मकता और नवीनता का अभाव होता है तो एक ही तौर- तरीके का काम करते हुये मन मैं उबाऊपन आ जाता है । हालांकि  कुछ लोगों का इसमें भी मन लगता है । और वे एक ही तरह के  कार्यों को  बिना शिकायत किए  लंबे अरसे तक करते रहते हैं लेकिन जब भी उनके कार्य को छुड़वा कर उन्हें नया  करने को देते हैं तो वह आनाकानी करने लगते हैं।
बोरियत आखिर है क्या?
दरअसल बोरियत भावनाओं का ऐसा खालीपन है जिसमें किसी कार्य में  कोई उत्साह कोई उमंग नजर नहीं आता ।   बोरियत के साथ शायद ही कोई पसंद करता हो ?क्योंकि इसमें कोई रचनात्मकता, कोई नवीनता नहीं होती है ।एक ही कार्य को बार-बार करने से बोरियत होती है कभी-कभी एक ही  ढ़र्रे में चलने वाली हमारी जीवन  शैली   ही हमारी बोरियत का कारण  बन जाती है ।
बोरियत भरी जिंदगी से बाहर निकलना बहुत जरूरी है और बोरियत भरी जिंदगी से बाहर निकलने के लिए जरूरी है कि हम अपने हर कार्य में रचनात्मकता लाएं , नवीनता लाएं।
अपने कार्य को मन लगाकर करें।
दूसरा तरीका बोरियत को कम करने का है जिस  कार्य को करने से बोरियत हो रही है उसे और ज्यादा समय  तक करें ज्यादा समय तक उसी कार्य को करने से भी  बोरियत से निजात मिल जाती है।
अपने अंदर सुप्तावस्था मैं पड़ी क्रियाशीलता व रचनात्मकता को जगाने के लिए हमें योगा व ध्यान का सहारा लेना चाहिए। कहा जाता  है कि “व्यस्त रहें, मस्त रहें"
बोरियत हमें निष्क्रिय कर  देती है, मानसिक रूप से अपंग कर देती है इससे छुटकारा हमें सिर्फ और सिर्फ सक्रियता ही   दिला सकती है इसलिए खाली नहीं बैठना चाहिए। अपने हर कार्य में नवीनता लाएं और अधिक रचनात्मकता  लाएं ताकि  जीवन को उमंग, उत्साह और विभिन्न रंगों से भर सकें। 


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Monday, October 10, 2016

तन्हाई का दंश झेलते बुजुर्ग

वर्तमान की भागमभाग जिंदगी में इंसान इतना व्यस्त है कि उसकी मंजिल सिर्फ और सिर्फ दौलत, शोहरत और भौतिक सुख  सुविधाएं प्राप्त करना ही रह गया है ।इसमें कोई शक नहीं कि आज समृद्धि का प्रतिशत बढ़ा है, किंतु मनुष्य ने यह सब सुख सुविधाएं पाने के लिए बहुत बड़ी कीमत चुकाई है ,मसलन आपसी रिश्तो की उपेक्षा, स्वार्थी मनोवृति, अकेलापन, धन लोलुपता के संकुचित दायरे में सिमट कर रह गई हैं।
मां बाप, भाई बहन, बुजुर्ग आदि सब रिश्ते बेमानी लगने लगे हैं इन रिश्तो की आत्मीयता, पवित्रता, मधुरता, अपनत्व अब इतिहास बन कर रह गया हैं।
पुरानी सभ्यता, संस्कृति अब दम तोड़ती नजर आ रही है|  इसके लिए कौन दोषी है? कौन जिम्मेदार है?
आधुनिकता और स्वार्थ लोलुपता की नई संस्कृति राष्ट्र के लिए “अभिशाप या वरदान” क्या सिद्ध होगी? यह एक अनसुलझा प्रश्न है इसका उत्तर तो शायद भविष्य के गर्भ में ही छुपा है और शायद नहीं भी…….
इसका उत्तर मनुष्य को वर्तमान में ही समय-समय पर  मिलता रहता है, पर शायद आंखें होते हुए भी हम देख नहीं पा रहे हैं और बुद्धि विवेक होते हुए भी समझ नहीं पा रहे हैं|



पाश्चात्य संस्कृति का अंधानुकरण करके हम स्वयं को व अपने बच्चों को आधुनिकता, सभ्यता के झूठे आडंबर से सराबोर करके स्वयं को सभ्य सुसंस्कृत दिखाने का दिखावा करने का प्रयास कर रहे हैं जबकि आज की सभ्यता ने जीवन को बाहरी व झूठे आडंबर,  उग्रता, तनाव व भौतिकता, व्यापारिक मनोवृत्ति से दमित कर रखा है| वर्तमान सभ्यता ने हमें हमारे संसर्ग में आने वाली ईमानदारी, नेक नीयती ,सज्जनता और शराफत जैसे दिव्य गुणों से कोसों दूर कर दिया है। मेरे विचार से वर्तमान शिक्षा प्रणाली भी काफी हद तक जिम्मेदार है छात्र छात्राएं स्कूल की परीक्षा अच्छे नंबरों से  पास कर लें, परंतु उनके जीवन का एकमात्र लक्ष्य होता है, अधिक से अधिक पैसा कमाना…... तरीका चाहे जो भी हो…... सही या गलत
वह नहीं जानते की सच्ची खुशी या सुख तभी मिलता है जब हम अपनी सभ्यता संस्कृति को बरकरार रखते हुए अपने तुच्छ अहंकार को मिटाकर घर के बुजुर्गों को यथोचित सम्मान, जनकल्याण व परिवार कल्याण के लिए समर्पित होने में है।आज भौतिकता संपूर्ण विश्व को  अपने  लोभ के जंजाल में बाँधती जा रही है।
महात्मा बुद्ध  80 वर्ष की आयु तक इस पृथ्वी पर भ्रमण करके लोगों के जीवन को ज्ञान से भरते रहे और उन्हें नई राह दिखाते रहे।
अंग्रेजी शिक्षा हमे लोभ में लिप्त कर कामी, स्वार्थी ,स्वच्छंद और आचार -विचारहींन बना रही है ।इस नकली विद्या ने हमसे हमारी पहचान छीन ली है| सादगी और आध्यात्मिकता में हमारी वैदिक शिक्षा आज की अंग्रेजी शिक्षा से कई गुना ज्यादा बेहतर और महान थी।अंग्रेजी शिक्षा से आज की युवा पीढ़ी मानसिक रूप से पंगु होती चली जा रही है ।
अगर आज राष्ट्र को विनाश से बचाना है तो आधुनिक शिक्षा प्रणाली में एक बड़ा बदलाव करने की आवश्यकता है|
इसी का जीता-जागता उदाहरण हमारे सामने है--- वृद्धावस्था आश्रम
इससे ज़्यादा शर्मनाक और क्या बात हो सकती है,हम भारतवासियों के लिए????


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Saturday, October 8, 2016

मन की चंचलता {भटकाव}

मन भ्रामक है, चंचल है, मन भागता है चहुंओर, बार-बार भटकता है| विचारों का प्रवाह अनवरत हमारे मानसिक पटल पर होता रहता है| मन इतना बलवान है कि हमें इस पर लगाम लगाने में असमर्थता का अनुभव होता है| चाह कर भी मन के भटकाव को नियंत्रित करना बेहद कठिन जान पड़ता है|
वास्तव में मन की गति बड़ी तीव्र होती है, इतनी तीव्र कि चंद पलों में हजारो मील की यात्रा कर वापस आ सकता है| दरअसल मन ज़्यादातर भ्रामक परिकल्पनाएं करता है और हम उसे रोकने में असमर्थ रहते हैं| मन हमें बार-बार विचलित करता है|
प्रश्न उठता है, आखिर  मन  के भटकाव को कैसे नियंत्रित किया जाए?
एकाग्रता द्वारा मन की चंचलता को नियंत्रित किया जा सकता है| अर्जुन ने एकाग्रता के द्वारा ही मछली की आंख पर निशाना साधने में सफलता पाई थी| अर्जुन ने तेल के प्रवाह में गोल घूमती मछली की छवि मात्र देखकर अपना बाण चलकर ,मन की एकाग्रता की चमत्कारिक शक्ति को प्रमाणित किया था ।दरअसल चित्त की वृत्तियां ही हमें चंचल बनाती हैं|
स्वाध्याय की वृत्ति विकसित करने से हमारा मन निरंतर श्रेष्ठ विचारों से ओतप्रोत रहता है तथा हमारी धारणा को मजबूत आधार भी मिलता है|
योग और ध्यान द्वारा हम  अपने मन के भटकाव को नियंत्रित कर सकते हैं| एकाग्रता बढ़ाने में आत्मसंयम योग और ध्यान रामबाण औषधि सिद्ध हुए हैं|
दरअसल मन का भ्रामक होना हमारी मानसिक रुग्णता का परिचायक है| क्योंकि हमारा अपने मन पर नियंत्रण ही नहीं है| हमें कोशिश करनी चाहिए कि किसी की कुचेष्टाओं में फंसकर अपने मन को भ्रमित न होने दें और यह तभी संभव है जब हमारे  अंदर  स्वाध्याय की वृत्ति विकसित हो |अधूरा या  अपर्याप्त  ज्ञान  ही मन के भटकाव एक अहम कारण है| नतीजा विचारों का भटकाव जो कि हमारे दुखों का मूल करण है।
कबीर दास जी ने कहा है --
साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय|
सार-सार को गहि रहे, थोथा देई उड़ाय |”
यदि हम कबीर दास जी के कहे हुए शब्दों पर ध्यान दें, इन पर अमल  करें तो हमारे मन का भटकाव असंभव है और मन विचलित नहीं होगा तो सफलता हमारे आगे होगी और हम लक्ष्य  की ओर निरंतर अग्रसर होते रहेंगे और जो मुकाम हमें चाहिए उसे हासिल कर ही लेंगे|
अत्यावश्यक है--मन की एकाग्रता, योग और ध्यान ऐसी आधारशिला है जिसको अपनी दिनचर्या में शामिल करके कोई भी व्यक्ति अपने भाग्य का निर्माण कर सकता है| ध्यान का अभ्यास करते रहने से कुछ दिन बाद हमें एहसास होने लगेगा कि हमारे अंतर्मन में एक अलौकिक शक्ति और अक्षय ऊर्जा का भंडार समाया हुआ है जिसे हम अभी तक निष्फल  कर्मों के कारण जाया करते आ रहे थे और ऐसा करने से हम गंतव्य तक पहुंचने में असफल हो रहे थे|

लक्ष्य प्राप्ति के लिए मन का भटकाव समूल नष्ट करके एकाग्रचित्त होना अत्यावश्यक है| एकाग्रता का मतलब है, किसी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए एक ही चीज पर अपने ध्यान को केंद्रित करना| जब हम ध्यान द्वारा अपने मन को एकाग्र करने में सफल हो जाएंगे तो वह दिन दूर नहीं जब हम अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल हो जाएंगे|  


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एहसास {एक प्रेरक प्रसंग}

एक बार एक दार्शनिक ने कहीं पढ़ा --वास्तव में सौंदर्य ही संसार में सबसे बड़ी विभूति है ।ज्ञान, कर्म और पूजा तो परमपिता परमात्मा को पाने के लिए छोटे एवं  तुच्छ मार्ग हैं| सही मार्ग तो सौंदर्य ही है। सौंदर्य के माध्यम से सरलतापूर्वक ईश्वर के दर्शन किए जा सकते हैं| पर्वतों की रम्य कंदराओं और नदियों के मनमोहक संगम पर साधक परम तत्व को प्राप्त कर सकता है| अतः पर्वतों की घाटियों और नदियों के संगम पर परमात्मा को खोजो|”

यह पढ़कर वह दार्शनिक सौंदर्य की खोज में निकल पड़ा| उसका घर एक रेगिस्तान में था| यह पढ़ने के बाद उसे अपना घर और रेगिस्तान अच्छे नहीं लग रहे थे| कारण, वहां कभी भी सौंदर्य नहीं था| एक दिन वह नदी- नालों और  वन- पर्वत घूमता- घामता अपने घर तक जा पँहुचा | बहुत दिन बाद आने के कारण परिवार ने व नगर वासियों ने उसका खूब स्वागत सत्कार किया| कुछ दिन रुकने के बाद शीघ्र ही उसका मन उस सौंदर्यहीन स्थान से ऊब गया| उसने वहाँ से चल देने का निश्चय किया| जिस दिन वह चलने की तैयारी कर रहा था, गाँव का एक संत उसके पास आया और  पूछा-अब कहाँ जा रहे हो?”
दार्शनिक बोला-यहाँ से कहीं दूर जहाँ सौंदर्य के दर्शन हो सकें| यहाँ तो केवल रेगिस्तान ही रेगिस्तान है| सौंदर्य का नामोनिशान भी नहीं |”
संत ने पूछा-तुम्हें कैसा सौंदर्य चाहिए?”
दार्शनिक बोला-ऐसा सौंदर्य जो मन को लुभा सके तथा मन और आत्मा को शांति दे
संत ने पूछा-तुम आज तक सौंदर्य की खोज में  घूमते रहे हो| बताओ तो जरा कि तुमने अपने मन और आत्मा की शांति के लिए इतना सौंदर्य भोगने के बाद खुद कितने  सौंदर्य की सृष्टि की है? तुम आज तक बाहर के सौंदर्य को ही खोजते रहे हो कभी अपने भीतर के  सौंदर्य को खोजने की भी कोशिश की है? तुम बार-बार अपने घर और नगर से भाग जाते हो क्योंकि यहाँ रेगिस्तान है| एक दिन परमात्मा तुमसे पूछेगा कि मेरे इतने सौंदर्य को देखने के बाद तुमने मेरे सौंदर्यहीन स्थान को सौंदर्य पूर्ण बनाने का प्रयास क्यों नहीं किया, तो क्या उत्तर दोगे?
क्या तुमने कभी सोचा, इस रेगिस्तान में भी फूल का एक पौधा या घास की बाली लगा दूँ ताकि यह स्थान भी सौंदर्य पूर्ण हो सके? केवल अपने ही कल्याण की बात सोचते हो, दूसरों की नहीं|”
दार्शनिक को एहसास हुआ कि संत ठीक कह रहे हैं| वह वहीं रुक गया और सौंदर्य की सृष्टि में जुट गया|


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Wednesday, October 5, 2016

शब्दों में छुपी अपार शक्ति

पानी मर्यादा तोड़े तो विनाश!
और वाणी मर्यादा तोड़े तो सर्वनाश!!

हमारे शब्द हमारे व्यक्तित्व का आईना होते हैं शब्दों में अपार शक्ति होती है ।कई बार शब्दों से हमारा अहंकार टपकने लगता है ।विधाता ने वाणी के रूप में हमें एक अद्भुत उपहार उपहार दिया है लेकिन अफसोस जिसका हम दुरुपयोग करते हैं ।एक बार एक व्यक्ति महान दार्शनिक सुकरात के पास आया और बोला कि मैं आपको एक राज की बात बताने आया हूँ। सुकरात ने कहा ,पहले बताओ क्या वह बात 100 फ़ीसदी सत्य है ? क्या वह बात पवित्र और अनूठी है ? और क्या उसे जानने से हम सबका भला होगा?
उस आदमी ने कहा ,नहीं ;ऐसा तो कुछ भी नहीं है।
सुकरात ने कहा ,तो बेहतर यही होगा कि तुम मुझे वह बात ना बताओ । तुम मेरा और अपना समय क्यों बर्बाद कर रहे हो?
हम निरर्थक बातों में अपना समय ,अपनी उर्जा व अपना कीमती समय गँवाते रहते हैं इस मानवीय शरीर की ऊर्जा को हमें किफायत से ही खर्च करना चाहिए, हमें कोशिश करनी चाहिए कि हमारे मुंह से निकली हर बात सत्य ,मधुर ,निष्पाप, अर्थपूर्ण और प्रभावशाली होनी चाहिए । वाणी का प्रभाव बहुत गहरा होता है, गहरा असर छोड़ता है सुनने वाले व्यक्ति पर|
वाणी का तीखापन  चुभता  है चोट पहुंचाता है सुनने वाले के दिलो -दिमाग पर|  मनुष्य के व्यक्तित्व का प्रभाव झलकता है वाणी से| व्यक्ति की पहचान है वाणी
सामान्य जीवन में हम जो व्यवहार करते हैं उसमें  वाणी की अहम भूमिका होती है| वाणी को सुनकर, उसके भावों को समझ कर  जाना जा सकता है  कि संबंधित व्यक्ति की  मन: स्थिति कैसी है? उसका स्वभाव कैसा है? हम जो भी बोलें वह तर्कसंगत, न्याय संगत और सचेतन होना चाहिए|
अगर हम कुछ बोलने के लिए अपना मुंह खोलें तो पहले सुनिश्चित कर लें क़ि वह मौन से बेहतर हो ।
हमें  दूसरों की नहीं बल्कि अपनी हर गतिविधि पर नजर रखनी चाहिए।
अपने शब्दों से ,कार्यप्रणाली से किसी का अहित ना करें ।किसी को शारीरिक या मानसिक आघात ना पहुंचाएं या किसी को आर्थिक पीड़ा ना दें।
आत्मिक उन्नति का पहला पायदान है कि हम  जागृत रहे अपने स्वयं के  हर कर्म के प्रति।
हमारे शब्द, हमारी वाणी ,ज्ञान और व्यक्तित्व का आईना होते हैं।
कबीर दास जी ने कहा है कि ऐसी बानी बोलिए ,मन का आपा खोए ।औरों को शीतल करे ,आपहुं शीतल होये।
जाहिर सी बात है ,सदाचार बोयेंगे तो सम्मान काटेंगे।


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