किसी के दुख मे अनुभूति, हमदर्दी, करुणा, किसी दुखी व्यक्ति के प्रति प्रकट की जाने वाली दया को सहानुभूति कहते हैं लेकिन सहानुभूति सहायता करने की प्रवृत्ति के लिए तत्पर हो यह जरुरी नहीं है सिर्फ हृदय की भावुकता तक ही सीमित रहने वाली सहानुभूति सराहनीय नहीं होती |
सराहनीय अनुभूति का भाव वही है जो हृदय में किसी के प्रति हमदर्दी ,दया के भाव आते ही क्रिया रूप में गतिशील होने लगे| किसी की पीड़ा को देख कर किंकर्तव्यविमूढ़ होकर सिर्फ मौखिक रुप से दया ,करुणा की बात करते रहना,आहें भरने लगना या आंसू बहाने लगना…. महज़ एक दिखावे की संवेदना या कोरी भावुकता है !यह सार्थक सहानुभूति नहीं है।
सच्ची संवेदना, सहानुभूति की श्रेणी में तभी आ सकती है जब व्यक्ति के दुख या पीड़ा को दूर करने के लिए यथासंभव,यथासाध्य प्रयत्न किया जाए ।
समानुभूति वह गुण है जो हमें दूसरों को उनकी मन:स्थिति के अनुरूप समझने, सोचने ,महसूस करने और उन्हें वैसे ही स्वीकार कर पाने की क्षमता देती है| सिर्फ समानुभूति से ही यह संभव हो पाता है कि हम ऐसे उचित एवं कारगर उपायों को ढूंढ सकें जो दूसरों के लिए प्रगतिशील सिद्ध हों| अर्थात समानुभूति मतलब दूसरों की आंखों से देखना, दूसरे के कानों से सुनना , दूसरे के दिमाग से समझना और दूसरे के दिल से महसूस करना । ऐसा करने के लिए समानुभूति करने वाले व्यक्ति को अपने जूते उतार कर दूसरे व्यक्ति के जूते पहनने पड़ते हैं और दूसरे के जूते में पैर रखने से पहले उसे अपने जूते उतारने होंगे|
समानुभूति स्थाई रिश्तो की नींव है क्योंकि इस गुण के चलते दो व्यक्ति एक स्तर पर रहते हैं दरअसल यह एक दृष्टिकोण है जिससे स्वत: ही प्रतिक्रिया होती है जबरदस्ती करवाई नहीं जाती या कह सकते हैं कि समानुभूति एक ऐसा यंत्र है जिसके द्वारा एक व्यक्ति के मन में जाकर उसके अस्तित्व को पहचाना जा सकता है। समानुभूति समान स्तर पर ही संभव हो पाती है|
समानुभूति सोच तक सीमित नहीं हो सकती और न ही पूर्वाग्रह से ग्रसित होती है बल्कि समानुभूति करने वाला व्यक्ति वही महसूस करता है जो दूसरा व्यक्ति महसूस करता है, वही समझ सकता है जो दूसरा व्यक्ति समझता है| पहला भावात्मक तत्व है जो कि सभी प्राणियों में होता है जबकि दूसरा तत्व संज्ञानात्मक है जो केवल मनुष्यों में है| दूसरों के कष्ट या संवेगों को संबंधित व्यक्ति के दृष्टिकोण से समझने की योग्यता सिर्फ मनुष्य में होती है| परिचितों के प्रति, आत्मीय जन के प्रति, साथी मनुष्यों के प्रति या जो हमारे जैसे होते हैं उनके प्रति समानुभूति अधिक होती है| वही व्यक्ति अधिक समानुभूति व्यक्त करते हैं जब उन्होंने उसी प्रकार का कष्ट या आपदा का सामना किया हो? प्रभावित व्यक्ति के द्वारा जितनी अधिक भावनात्मक व्यथा अभिव्यक्त की जाती है उतनी अधिक सहायता प्राप्त होती है| समानुभूति उस व्यक्ति पर अधिक होती है जो हमारे समरूप होते हैं |
स्मरण रहे कि सिर्फ कोरी भावुकता प्रदर्शित करने से बचें क्योंकि इससे किसी को कोई लाभ नहीं होता बल्कि आवश्यकता इस बात की है कि ज़रूरतमंद व्यक्ति के साथ समानुभूति का व्यवहार किया जाये।
Samanubhuti ki zyada zarurat hai aajkal
ReplyDeleteSamanubhuti ki zyada zarurat hai aajkal
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 02 फरवरी 2019 को लिंक की जाएगी ....http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
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