Monday, November 28, 2016

अकेलापन, अभिशाप नहीं

 “अकेला व्यक्ति कमजोर नहीं होता है बल्कि शक्तिशाली होता है”-- स्वामी विवेकानंद
“वह कभी अकेले नहीं होते, जिनके पास आदर्श विचार हैं” -- फिलिप सिडनी
व्यक्ति के अंदर नए विचार व आविष्कार की धारणाएं अकेलेपन में ही पैदा होती हैं| दरअसल अकेलापन और कुछ नहीं एक सोच है, महज़ एक भाव है व्यक्ति के मन का | जब हम स्वयं को महत्वहीन समझने लगते हैं और निष्क्रिय हो जाते हैं तब हम अकेलापन महसूस करते हैं| यह जरूरी नहीं है कि व्यक्ति अकेला होता है तभी अकेलापन महसूस करता है| कई बार बहुत सारे लोगों के बीच होते हुए भी, अपनों के होते हुए भी हम खुद को अकेला महसूस करने लगते हैं| जब हमें जरूरत के समय किसी से सहारा नहीं मिलता या कोई हमारी मन:स्थिति को समझने वाला नहीं मिलता, हमारे जज्बातों  को समझने वाला नहीं मिलता तब व्यक्ति अकेलापन महसूस करता है |
कई लोगों के बीच होते हुए भी व्यक्ति खुश ना रहे लेकिन उस व्यक्ति को अकेला रहना भी पसंद ना हो यही अकेलापन कहलाता है कि सबके  साथ होकर भी वह खुद को अकेला समझे और दूसरी तरफ जब व्यक्ति अपनी इच्छा से अकेले रहना चाहता है सिर्फ अपने साथ तो इसका मतलब है कि व्यक्ति एकांत चाहता  है और वह व्यक्ति एकांत में अकेले रह कर भी खुश है, संतुष्ट है क्योंकि वह व्यक्ति एकांत में स्वयं को प्रसन्नचित, आनंदित, सकारात्मक सोच,  सक्रियता, भावनात्मक व मानसिक रुप से तरोताजा महसूस करता है|
अकेलापन आखिर किन कारणों से प्रकाश में आता है---??
सृष्टि के  प्रत्येक प्राणी में  आचार-विचार,स्वभाव, सोच भिन्न-भिन्न होने के कारण अकेलेपन के कारण भी भिन्न-भिन्न हो सकते हैं? मसलन घर का माहौल, स्वयं से कोई गलती या अपराध हो जाना, पति-पत्नी की आपसी सोच व विचारधारा ना मिलना, मनमाफिक रोजगार ना मिलना, किसी बात का अहंकार होना, लगातार असफलताएं मिलना, परिवार में वैचारिक मतभेद होना, किसी के द्वारा विश्वासघात या धोखा देना...वगैरह -वगैरह |
अतः प्रश्न उठता है कि  अकेलेपन से निजात कैसे पाई जाए……?
अकेलेपन का मतलब कई व्यक्तियों के साथ का ना होना नहीं है बल्कि लोगों के साथ रहते हुए भी भावनात्मक लगाव, अपनेपन के  एहसास का ना होना है|
सबसे पहले व्यक्ति को अपने अकेलेपन का कारण ढूंढकर, फिर उसे समझ कर उसका यथासंभव निवारण करना चाहिए-----
सकारात्मक सोच अपनाएं|
कुछ नया करने का प्रयास करें|
अहंकार को स्वयं से दूर रखें|
संगीत सुनें, नृत्य करें, बागवानी करें, लेखन की आदत डालें, नई नई जगह घूमने जाएं, फोटोग्राफी करें, ज्ञानवर्धक पुस्तकें पढ़ें , कुकिंग करें या जो भी आपको रुचिकर लगे उसको बेहतर तरीके से अंजाम देने का प्रयास करें|
सृष्टि की हर एक चीज में खूबसूरती देखने की कला को विकसित करें क्योंकि प्रकृति की सभी चीजों में कुछ ना कुछ अद्भुत है, यदि आप हर चीज को  गहराई से  देखेंगे तो आप हर एक चीज को बेहतर तरीके से समझ सकेंगे |
कमजोर व्यक्ति तो  अपने दम पर किसी भी कार्य को करने की हिम्मत ही नहीं जुटा पाता है इसके इतर साहसी व्यक्ति उसी काम को अकेले दम पर करने का साहस करता है|
स्मरण रखें…. विश्व एक व्यायामशाला है, जहां हम खुद को मजबूत बनाने के लिए आते हैं|
रविंद्रनाथ टैगोर जी ने  नारा दिया है-- “एकला चलो”
“स्वतंत्र होने का साहस करो, जहां तक तुम्हारे विचार जाते हैं वहां तक जाने का साहस करो और उन्हें अपने जीवन में उतारने का साहस करो”--स्वामी विवेकानंद
“शक्ति जीवन है, निर्बलता मृत्यु है| विस्तार जीवन है, संकुचन मृत्यु है| प्रेम जीवन है, द्वेष मृत्यु है|
खुद को कमजोर समझना सबसे बड़ा पाप है”-- विवेकानंद जी
“ जो अकेले चलते हैं,वे शीघ्रता से आगे बढ़ते हैं”-- नेपोलियन
अगर पाना है मंजिल तो अपना रहनुमा खुद बनो,वे अक्सर भटक जाते हैं जिन्हें सहारा मिल जाता है|
अतः हमेशा सोचें --कि  आज अच्छा था, आज मजेदार था, कल एक और बेहतर, खूबसूरत, आनंददायक दिन होगा फिर देखिए अकेलेपन की भावना आपसे कोसों दूर नजर आएगी और आप स्वयं को शक्तिशाली महसूस करेंगे|

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