Saturday, October 8, 2016

एहसास {एक प्रेरक प्रसंग}

एक बार एक दार्शनिक ने कहीं पढ़ा --वास्तव में सौंदर्य ही संसार में सबसे बड़ी विभूति है ।ज्ञान, कर्म और पूजा तो परमपिता परमात्मा को पाने के लिए छोटे एवं  तुच्छ मार्ग हैं| सही मार्ग तो सौंदर्य ही है। सौंदर्य के माध्यम से सरलतापूर्वक ईश्वर के दर्शन किए जा सकते हैं| पर्वतों की रम्य कंदराओं और नदियों के मनमोहक संगम पर साधक परम तत्व को प्राप्त कर सकता है| अतः पर्वतों की घाटियों और नदियों के संगम पर परमात्मा को खोजो|”

यह पढ़कर वह दार्शनिक सौंदर्य की खोज में निकल पड़ा| उसका घर एक रेगिस्तान में था| यह पढ़ने के बाद उसे अपना घर और रेगिस्तान अच्छे नहीं लग रहे थे| कारण, वहां कभी भी सौंदर्य नहीं था| एक दिन वह नदी- नालों और  वन- पर्वत घूमता- घामता अपने घर तक जा पँहुचा | बहुत दिन बाद आने के कारण परिवार ने व नगर वासियों ने उसका खूब स्वागत सत्कार किया| कुछ दिन रुकने के बाद शीघ्र ही उसका मन उस सौंदर्यहीन स्थान से ऊब गया| उसने वहाँ से चल देने का निश्चय किया| जिस दिन वह चलने की तैयारी कर रहा था, गाँव का एक संत उसके पास आया और  पूछा-अब कहाँ जा रहे हो?”
दार्शनिक बोला-यहाँ से कहीं दूर जहाँ सौंदर्य के दर्शन हो सकें| यहाँ तो केवल रेगिस्तान ही रेगिस्तान है| सौंदर्य का नामोनिशान भी नहीं |”
संत ने पूछा-तुम्हें कैसा सौंदर्य चाहिए?”
दार्शनिक बोला-ऐसा सौंदर्य जो मन को लुभा सके तथा मन और आत्मा को शांति दे
संत ने पूछा-तुम आज तक सौंदर्य की खोज में  घूमते रहे हो| बताओ तो जरा कि तुमने अपने मन और आत्मा की शांति के लिए इतना सौंदर्य भोगने के बाद खुद कितने  सौंदर्य की सृष्टि की है? तुम आज तक बाहर के सौंदर्य को ही खोजते रहे हो कभी अपने भीतर के  सौंदर्य को खोजने की भी कोशिश की है? तुम बार-बार अपने घर और नगर से भाग जाते हो क्योंकि यहाँ रेगिस्तान है| एक दिन परमात्मा तुमसे पूछेगा कि मेरे इतने सौंदर्य को देखने के बाद तुमने मेरे सौंदर्यहीन स्थान को सौंदर्य पूर्ण बनाने का प्रयास क्यों नहीं किया, तो क्या उत्तर दोगे?
क्या तुमने कभी सोचा, इस रेगिस्तान में भी फूल का एक पौधा या घास की बाली लगा दूँ ताकि यह स्थान भी सौंदर्य पूर्ण हो सके? केवल अपने ही कल्याण की बात सोचते हो, दूसरों की नहीं|”
दार्शनिक को एहसास हुआ कि संत ठीक कह रहे हैं| वह वहीं रुक गया और सौंदर्य की सृष्टि में जुट गया|


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