Thursday, April 27, 2017
Wednesday, April 26, 2017
Saturday, March 4, 2017
Wednesday, February 15, 2017
Friday, February 10, 2017
Friday, January 20, 2017
चुनावी महासंग्राम {२०१७}
लोकतंत्र का सम्मान करो।।
भारत, विश्व में सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है।भारत में 26 जनवरी 1950 को संविधान लागू हुआ था तभी से ही भारत में लोकतंत्र का अस्तित्व है।
संविधान की प्रस्तावना में कहा गया है कि, “हम, भारत के लोग भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व संपन्न,समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने का संकल्प करके तथा उसके समस्त नागरिकों को सामाजिक,आर्थिक और राजनीतिक न्याय,विचार अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता,प्रतिष्ठा और अवसर की समानता प्राप्त कराने के लिए तथा उन सबमें व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता सुनिश्चित करने हेतु बंधुत्व बढ़ाने के लिए,अपनी इस संविधान सभा में आज 26 नवंबर, 1949 के दिन इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्म-समर्पित करते हैं।”
अब्राहिम लिंकन---”लोकतंत्र, लोगों का, लोगों के लिए और लोंगों द्वारा है।”
लेकिन अफ़सोस की बात है कि पिछले कुछ दशकों से भारत का लोकतंत्र सिर्फ और सिर्फ पूँजीवादी लोकतंत्र बनकर रह गया है।जहाँ अमीरों द्वारा गरीब जनता का शोषण किया जाता है।भारतीय राजनीति बहुदलीय है लेकिन शायद सिर्फ भ्रष्टाचार और मौकापरस्ती तक ही सिमट कर रह गई है।चहुँ ओर भ्रष्टाचार अपनी चरम सीमा तक व्याप्त है। निहित स्वार्थों में लिप्त होकर आम जनता को भड़काकर देश में जहाँ-तहाँ आये दिन बंद,आगजनी,हड़ताल, दंगे,उपद्रव,आतंकवादी गतिविधियो ने लोकतंत्र के आदर्शों पर गहरा आघात पंहुचाया है।
आज के परिवेश में चुनाव का अर्थ ज़्यादातर जनता यही जानती है कि बैनर,नेताओं के पोस्टर,होर्डिंग्स,प्रत्याशियों द्वारा किये जा रहे दौरे,खाई जा रहीं कसमें,किये जा रहे वायदे,लंबे-चौड़े भाषण, दल-बदलू नेता,मध्यावधि चुनाव,उम्मीदवार द्वारा किये गए कार्यों का ब्यौरा और जीतने के बाद गली,क़स्बा,शहर और देश के विकास कार्यों की लंबी सूची………..का हवाला देकर झूठा आश्वासन|
आखिर ये सब झूठ क्यूँ और कब तक बर्दाश्त करे जनता ?
मतदाता आखिर कब जागरूक होगा ?
अब समय आ गया है ….भारतीय लोकतंत्र में सुधार अत्यावश्यक है।सतत् जागरूकता ही सही मायने में लोकतंत्र का मूल आधार है।राजनीतिक दलों को निजी स्वार्थों व भाई-भतीजावाद से ऊपर उठकर देश का भविष्य, आम जनता के हितों को सर्वोपरि रखने की कोशिश करनी चाहिए।पारदर्शिता और लोकतंत्र के हितार्थ परिवर्तन लाने की हिम्मत होनी चाहिए राजनीतिक नेताओं में।
वैसे अब आम जनता भी काफी जागरूक हो गई है।होना ही चाहिए तभी अपने मत के दुरुपयोग को रोक पाने में कामयाब होगी जनता।मतदाता को चाहिए कि वह किसी के झाँसे या झूठे, कोरे वादों ,किसी भी प्रकार के प्रलोभनों में न फँसकर अपनी बुद्धि-विवेक का इस्तेमाल करके ही अपने अमूल्य मत का दान करें ताकि सही प्रत्याशी का चुनाव हो सके,गलत प्रत्याशी को झेलने की नौबत न आने पाए। मतदान अवश्य करें क्योंकि मतदान हर वयस्क का अधिकार है,कर्तव्य है,फ़र्ज़ है जिसे हर हाल में निभाया ही जाना चाहिए।
2017 के चुनावी दंगल में तकरीबन 29-30,000 युवा मतदाता भी पहली बार लोकतंत्र में शामिल होने के ज़ज़्बे से खासे उत्साहित हैं।उनके उत्साह,नए एहसास की वज़ह यही है कि राष्ट्र के प्रति अब उनकी भी जिम्मेदारी ,जवाबदेही है,राष्ट्र के विकास में सहयोग करने की।
युवा हो तुम, देश की शान।
जागो,उठो करो मतदान।।
याद रखें,कि अपने बुद्धि, विवेक का इस्तेमाल कर मतदान करना चाहिए । किसी भी प्रकार के लालच मैं न फँसे।सभी प्रत्याशी खुद के कार्यों के गुणगान गाएंगे अन्य दलों की आलोचनाएँ करेंगे,स्वयं को बेहतर सिद्ध करने के लिए एड़ी-चोटी का दम लगाएंगे। सच -झूठ , सही-गलत, न्याय-अन्याय,बेहतर-बदतर……. ये निर्णय मतदाता का है किसी भी दल के प्रत्याशी का नहीं।
मत भूलो,...... आपके वोट से आएगा बदलाव,
सुधरेगा समाज,कम होगा तनाव।
अज्ञानता अभिशाप है जानकारी वरदान
अज्ञानी होना उतनी शर्म की बात नहीं है जितना कि सीखने की या जानने की इच्छा ना रखना।
एच. होम--- “अज्ञान भय की जननी है |”
“सीखना, रचनात्मकता को जन्म देता है| रचनात्मकता विचारों की ओर ले जाती है| विचार आपको ज्ञान देता है| ज्ञान आपको महान बना देता है|”----- अब्दुल कलाम
“अज्ञान के सिवाय कोई पाप नहीं”---- ऑस्कर वाइल्ड
जीवन में किसी भी काम को करने के लिए उसके बारे में सही जानकारी होना बेहद जरूरी है ।अधूरे,या अपर्याप्त ज्ञान से किया गया कार्य सफल नहीं हो पाता है क्योंकि अज्ञानता हमारी राह का रोड़ा बनता है,परेशानी का सबब बनता है जबकि किसी भी विषय के बारे में सही जानकारी हो तो सही और गलत में अंतर समझना आसान हो जाता है| कुछ लोग साक्षर होते हुए भी जानबूझकर अज्ञानता के आगोश में जीना चाहते हैं क्योंकि उनके अंदर कुछ नया सीखने की कुछ रोचक करने की इच्छा ही नहीं होती है |कुछ झूठे दंभ के चलते किताबी ज्ञान को रटकर डिग्रियां हासिल कर सोचते हैं कि उन्हें सब ज्ञान हैं ,हर चीज़ की जानकारी है ,कुछ भी अछूता नहीं है जबकि यह सही नहीं है| ज्ञान सीमित होता है, वह विशाल हो सकता है इसके बावजूद भी सीमित होता है| अस्तित्व में सबसे विशाल दायरा अज्ञानता का है, जोकि अंधकार है ।
महात्मा गांधी ने कहा था ,”करोड़ों लोगों का निरक्षर रहना भारतवर्ष के लिए कलंक और अभिशाप है इससे मुक्ति पानी ही होगी।”
बौद्धिक स्तर पर तो सभी यह स्वीकार करते हैं कि शिक्षा विकास की अनिवार्य शर्त है और साक्षरता शिक्षा का पहला पायदान| भारत गाँवों का देश है और निरक्षरता,अज्ञानता भारत के गाँवों की प्रमुख समस्या और इसी समस्या से अन्य तमाम समस्याएं उत्पन्न होती हैं मसलन जनसंख्या वृद्धि, बेरोजगारी ,गंदगी ,बीमारी ,महामारी, प्रदूषण, तनाव इत्यादि। निरक्षरता के अभिशाप से ग्रसित गरीब अज्ञानता रूपी अंधकार में दिशाहीन भटक रहे हैं।वास्तव में वे सामाजिक,आर्थिक व राजनीतिक शोषण के शिकार हैं।विकास के जो भी कार्यक्रम चलाये जाते हैं वो उन तक पहुँच ही नहीं पाते हैं क्योंकि उन्हें सरकारी योजनाओं की और अपने अधिकारों की कोई जानकारी ही नहीं होती है।तब व्यक्ति का व राष्ट्र का विकास कैसे हो?
अत: प्रश्न उठता है कि इस कदर अज्ञानता की नींव पर खड़े देश का विकास कैसे संभव है??
अज्ञानता से कभी किसी भी समस्या का समाधान संभव नहीं है बल्कि अज्ञानता विपत्तियों का मूल है।साक्षर होने के बावज़ूद भी हम सिर्फ अपने से सम्बंधित बातों पर ही ध्यान केंद्रित करते हैं ।हमारे आसपास या देश- दुनिया में क्या हो रहा है? उससे हमें कोई सरोकार ही नहीं होता है।अंततः अंजाम, जानकारी के अभाव के चलते हम कई ऐसे फैसले या कार्य कर चुके होते हैं जिसकी कीमत हमें लंबे अर्से तक चुकानी पड़ती है।
अत: बेहतर है कि समय रहते ही हम आधुनिक समाज में अपनी पाँचों इन्द्रियों को सज़ग रखें, खुला रखें व उनका उपयुक्त इस्तेमाल करें जिससे कि वक़्त गुज़रने के बाद हम खुद को ठगा महसूस न करें। समय-समय पर हमारी छठवीं इंद्री भी हमें संकेत देती है लेकिन अज्ञानता वश हम उसका संकेत समझ ही नही पाते हैं कारण संकुचित सोच, विचार और अज्ञानता।कोई भी अपने स्वार्थ के लिए हमें इस्तेमाल न कर सके,शोषण न कर सके,और इसके लिए अत्यावश्यक है कि हम अपने ज्ञान का दायरा विस्तृत करें,जितना ज़्यादा से ज़्यादा संभव हो सके।
क्योंकि अज्ञानता से बड़ा कोई अभिशाप नहीं है और जानकारी से बड़ा कोई वरदान नहीं है।
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Thursday, January 5, 2017
नवाचार क्या है? और क्यों जरूरी है?
नवाचार, एक नया विचार, एक व्यवहार है;अर्थात शिक्षा को सरल, उपयोगी, व्यवहारिक, रुचिकर, रचनात्मक, क्रियात्मक व प्रासंगिक बनाना नवाचार है |
आधुनिक युग में व बच्चों के बहुमुखी, सर्वांगीण विकास के लिए शिक्षा पद्धति में नयापन व रोचक बनाने के लिए नवाचार की आवश्यकता है तभी बच्चों का सकारात्मक विकास, नैतिक मूल्यों व आदर्शों का विकास संभव है|
वर्तमान शिक्षण विधियों और पढ़ाने के तौर-तरीकों में नवीनता का समावेश करके शिक्षक, विद्यार्थियों का रुझान शिक्षा के प्रति बढ़ा सकते हैं | किताबी ज्ञान के अलावा छात्रों के मानसिक, शारीरिक व आध्यात्मिक विकास करना भी शिक्षक का ही दायित्व है| छात्रों को उनके लक्ष्य को हासिल करवाने के लिए परंपरागत तरीकों के अलावा ऐसे नए तरीके भी खोजे जा सकते हैं जो छात्र-छात्राओं के अस्तित्व से छात्र-छात्राओं को अवगत करा सकें या उनके अंदर जो हुनर, कौशल,प्रतिभा है उससे उनकी पहचान कराने में कारगर सिद्ध हो सकें|
नवाचार मतलब नए विचार, नीतियां जो कि बदलते दौर में, परिवेश में लाभदायक सिद्ध हों | नवाचार कोई नया कार्य करना मात्र नहीं है, बल्कि किसी भी कार्य को नए तरीके से करना नवाचार है |जरूरी नहीं कि प्राचीन शिक्षा पद्धति आज के परिवेश में भी शत-प्रतिशत मानक पर खरी उतरे |
एस्थर डाइसन - “परिवर्तन का अर्थ है कि जो पहले था वह सही नहीं था,लोग चाहते हैं कि चीजें बेहतर हों”
नीडो क्युबेन - “बदलाव अवसर लाता है”
ब्रूस बार्टन - “क्रिया और प्रतिक्रिया; उतार और चढ़ाव; परीक्षण और त्रुटि, परिवर्तन यही इस जीवन की लय है”
कार्ल जंग - “यदि हम बच्चों में कुछ बदलना चाहते हैं तो हमें पहले खुद को देख लेना चाहिए कि कहीं उससे अच्छा खुद में कुछ बदलना तो नहीं है”
शिक्षा को समयानुकूल बनाने के लिए शैक्षिक क्रियाकलापों में नई विधियों,नयी तकनीकि ने अपनी उपयोगिता को समय -समय पर सिद्ध किया है|
यदि छात्रों को नवीन व रोचक विधियों से अध्यापन कराया जाएगा तो ना केवल उनमें पढ़ाई के प्रति लगाव पैदा होगा बल्कि वह पहले से जल्दी व बेहतर सीखेंगे और ज़ाहिर सी बात है कि इसके परिणाम भी बेहतर आयेंगे |
परिवर्तन प्रकृति का नियम है| परिवर्तन से ही भविष्य में विकास संभव है, परिवर्तन एक गतिशील और बेहद आवश्यक प्रक्रिया है जो कि समाज को बदलते परिवेश के अनुकूल बनाती है| जिंदगी के प्रत्येक क्षेत्र में बदलाव होता है और होना भी चाहिए क्योंकि इन्ही परिवर्तनों की वजह से व्यक्ति व समाज में नव स्फूर्ति, जागरूकता, सजगता, जोश, चेतना, ऊर्जा,नवीनता प्राप्त होती है क्योंकि शिक्षा का लक्ष्य सिर्फ किताबों तक ही सीमित नहीं है वरन शिक्षा का वास्तविक लक्ष्य है - आत्मज्ञान यानी खुद को खोजना, खुद की सच्चाई को जानने की एक सतत प्रक्रिया और इसके लिए बच्चों को विभिन्न तरह के अनुभवों से गुजरने का अवसर देना |अत: इस प्रक्रिया को सुगम,सर्वसुलभ बनाना नवाचार है| अर्थात जो पुरानी शिक्षा पद्धति है उसको आज के परिवेश में देखते हुए उसे समझते हुए उन विचारों में क्या नयापन ला सकते हैं? कैसे रोचक बना सकते हैं? कैसे प्रभावी बना सकते हैं? इन तरीकों को शामिल करना ही नवाचार है ताकि शिक्षा को प्रभावी बनाया जा सके जिससे कि अधिक से अधिक छात्र लाभान्वित हों व स्वयं से रूबरू हो सकें|वो जान सकें कि वास्तव में उनके अंदर कौन सी प्रतिभा है? क्या हुनर है? ताकि अपने अंदर छुपी प्रतिभा को और निखार सकें|
बच्चा, शिक्षक के पाठ पढ़ाने की अपेक्षाकृत अपने अनुभव से अधिक सीखता है| बच्चा तभी सीखेगा; उसमें रचनात्मकता तभी आएगी; जब कक्षा में शिक्षक पाठ्य सहगामी कार्य या संबंधित गतिविधियां अधिक करवाएंगे | विभिन्न प्रकार के क्रियाकलाप या गतिविधियां होने से बच्चों की मानसिक, शारीरिक व सामाजिक रुप से सक्रियता बढ़ती है, उनमें आत्मविश्वास, आत्मनिर्भरता के गुण पैदा होते हैं| विद्यालय में एक ऐसा वातावरण होना चाहिए कि बच्चों को कक्षा में प्रवेश करते ही सक्रियता का एहसास हो तभी बच्चे सक्रिय और सृजनशील होंगे| एक अच्छा शिक्षक वही होता है जो बाल मनोविज्ञान का अच्छा ज्ञाता भी हो|
शिक्षा में नवाचारी गतिविधियों के लिए मानवीय संसाधन जैसे शिक्षक और विद्यार्थी, अन्य संसाधन- ब्लैक बोर्ड, पुस्तकालय, चित्रकला कक्ष , संगीत कक्ष, विज्ञान कक्ष ,विभिन्न खेलों से सम्बंधित सामग्री , अलमारियां क्राफ्ट, और विज्ञान संबंधी सामग्री, पेड़ पौधे, समय-समय पर होने वाली पाठ्य सहगामी गतिविधियां व शैक्षिक भ्रमण भी एक आकर्षक नवाचार के दायरे में आता है |
“अगर हम किसी और व्यक्ति या समय का इंतजार करेंगे तो बदलाव नहीं आएगा| हम ही वो हैं जो इस की प्रतीक्षा कर रहे हैं| हम ही वह बदलाव हैं जो हम चाहते हैं”--- बराक ओबामा
“कोई भी परिवर्तन, यहाँ तक की बेहतरी के लिए होने वाला परिवर्तन भी तकलीफ और असुविधाओं के साथ होता है”--- अर्नाल्ड बेनेट
“परिवर्तन को सचमुच मूल्यवान होने के लिए स्थाई और सिलसिलेवार होना चाहिए”--- टोनी रॉबिंस
आखिर नवाचार क्यों ज़रूरी है?
“दुनिया बहुत तेजी से बदल रही है; अब बड़े, छोटों को हरा नहीं पाएंगे.अब तेज, धीमे को हराएंगे”-- रोबर्ट मर्डोक
भारत,जो कि विश्व गुरु बनने का सपना देख रहा है यदि उस सपने को पूरा करना है तो हमें शिक्षा पद्धति में नवाचार को अपनाना ही होगा क्योंकि शिक्षा ही सशक्त हथियार है किसी भी राष्ट्र को विश्वगुरु बनाने के लिए|
शिक्षकों का छात्रों से मधुर व्यवहार व सकारात्मक वार्तालाप शैक्षिक लक्ष्यों कि प्राप्ति में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है|
जाहिर सी बात है कुछ बदलाव करने के लिए, समाज की बेहतरी के लिए जो ठोस कदम उठाए जाते हैं जो नवाचार प्रयोग में लाए जाते हैं शुरू में कठिन मेहनत तो करनी ही पड़ती है,कुछ कठिनाइयों का सामना तो करना ही पड़ता है, पर्याप्त समय लगता है परेशानियां भी होती है लेकिन इसका यह मतलब हरगिज़ नहीं की आधुनिक डिजिटल युग को देखते हुए भी हम शिक्षक व शिक्षण पद्धति में नवाचार ना अपनाएं |आधुनिक युग में परंपरागत सोच को, उन्हीं विचारों को अपनाते रहेंगे; नवाचार को शामिल नहीं करेंगे तो यह छात्रों के साथ ही नहीं बल्कि राष्ट्र के भविष्य के साथ खिलवाड़ होगा क्योंकि आज के छात्र ही कल के राष्ट्र का भविष्य हैं अत:नवाचार को न अपनाना किसी भी सूरत-ए- हाल में न्यायोचित नहीं है|अपनों के लिए शेयर अवश्य करे|
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